बीकानेर,राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर ने बीकानेर जेल के एक बंदी की याचिका के मामले में आकस्मिक परिस्थितियों में पैरोल आवेदनों का निस्तारण तय समय सीमा में नहीं करने को गंभीरता से लिया है। होईकोर्ट ने राज्य के गृह सचिव से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि प्रदेश के सभी कलेक्टर और जेल अधीक्षक आकस्मिक पैरोल के आवेदनों को लंबित नहीं रखे। बीकानेर जेल के एक बंदी की मां के निधन के बावजूद पैरोल आवेदन पर फैसला नहीं लेने पर हाईकोर्ट ने कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल और जेल अधीक्षक आर.अंतेश्वरन के विरुद्ध एक्शन लेने के निर्देश भी दिए हैं। हाईकोर्ट के न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश विनोद कुमार भारवानी की खंडपीठ के समक्ष कलेक्टर और जेल अधीक्षक ने अपना जवाब पेश किया है। खंडपीठ ने इस जवाब से नाराजगी जताते हुए असंतोष जाहिर किया है। खंडपीठ ने इस पूरे मामले की पत्रावली के साथ दोनों के जवाब राज्य के मुख्य सचिव को पेश करने के निर्देश दिए हैं। ताकि वे दोनों के विरुद्ध एक्शन ले सकें। साथ ही राज्य के गृह सचिव को कहा है कि वे सभी कलेक्टरों और जेल अधीक्षकों को पत्र भेजकर सुनिश्चित करें कि किसी भी आकस्मिक पैरोल आवेदन का समय पर निस्तारण कर दिया जाए।
बीकानेर जेल के बंदी गिरधारी सिंह की मां के निधन पर पैरोल समय पर स्वीकृत नहीं करने के मामले में कलेक्टर ने हाईकोर्ट में जवाब पेश किया है। दरअसल बंदी की मां का निधन नौ मार्च को हुआ तो उसने जेल अधीक्षक को सूचना दी। जेल अधीक्षक ने तत्काल जाने के लिए छह घंटे की पैरोल मंजूर कर दी। लेकिन बंदी ने कहा कि वह चला भी गया तो अंत्येष्टी में शामिल नहीं हो सकेगा। उसने पैरोल के लिए कलेक्टर को आवेदन तो कर दिया, लेकिन उसमें यह नहीं लिखा कि पैरोल कितने दिन की चाहिए। बीकानेर कलेक्टर ने यह पत्र झुंझुनूं कलेक्टर को भेज दिया। इससे पैरोल स्वीकृत होने में देर हो गई। इस बीच बंदी हाईकोर्ट चला गया। हाईकोर्ट में कलेक्टर ने 18 अप्रैल को जवाब पेश किया है।
बीकानेर जेल में बंद झुंझुनूं के बंदी गिरधारी सिंह की मां का निधन नौ मार्च को हो गया था। उसने 10 मार्च को जेल अधीक्षक को आकस्मिक पैरोल के लिए आवेदन किया था। जेल अधीक्षक ने एक महीने तक कोई फैसला नहीं किया। आठ अप्रैल को बंदी की तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। हाईकोर्ट ने आवेदन का निस्तारण चार दिन में करने के आदेश दिए थे।
प्रकरण लंबित कलेक्ट्रेट में आपात पैरोल के तीन प्रकरण 15 दिन से लंबित हैं। इनमें दो चूरू और एक झुंझुनूं का है। इन मामलों को लेकर मंगलवार को पैरोल कमेटी की मीटिंग भी हुई थी। मीटिंग में झुंझुनूं की रिपोर्ट पर डिस्कस किया गया।
हर महीने होती है पैरोल कमेटी की मीटिंगः पैरोल कमेटी की मीटिंग महीने में एक बार करने का नियम है। कलेक्टर कमेटी के चेयरमैन और जेल अधीक्षक सदस्य सचिव हैं। एसपी, एडीएम सिटी और समाज कल्याण विभाग के उपनिदेशक सदस्य हैं। यह कमेटी तय करती है कि बंदी को पैरोल पर भेजा जाए या नहीं। आपात पैरोल छह घंटे और सात दिन की मंजूर करने का अधिकार जेल अधीक्षक को होता है। इससे ज्यादा दिन की पैरोल के प्रकरण कलेक्टर को भेजे जाते हैं। कमेटी की अंतिम बैठक मंगलवार को हुई थी।