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बीकानेर,तीन साल की भूरी और विकी के पिछले पैर नहीं है। तीन माह की पारूल की कुछ भी नहीं दिखता ढाई माह के हैप्पी को पैरालिसिस है। यह इंसान के बच्चे नहीं, स्ट्रीट डॉग (सड़क पर रहने वाले श्वान) हैं। ऐसे दर्जनों बीमार, चायल कुत्तों का सहारा बना है आरती, प्रीतू और महेन्द्र जैसे युवाओं का बेजुयानों के प्रति प्यार और दुलार। जो सड़कों पर रहने वाले घायल और बीमार श्वानों को अपने बेजुबान वेलफेयर सेंटर में लाते हैं। उनका उपचार करते हैं और ठीक होने तक अपने पास रखते हैं। बीकानेर के बेटरनरी चिकित्सालय में चल रहे इस अस्थाई सेंटर को देखकर हर किसी का मन पसीज जाता है। यहां करीब 30 ऐसे छोटे-बड़े श्वान हैं, जिनको खाने नहलाने से लेकर दवा देने तक का काम युवक-युवतियां कर रहे हैं। मुक्ताप्रसाद बाइपास निवासी आरती का जबड़ा। को देखते ही स्ट्रीट डॉग्स उन्हें घेर लेते हैं। अब तो बीकानेर के कई गली मोहल्लों में सड़क पर घूमते श्वान उन्हें पहचानते हैं। वे दर्जनों श्वानों को उपचार और देखभाल कर ठीक करने के बाद वापस जहां से लाए थे उसी मोहल्ले में छोड़ आते हैं।

सड़क पर कुत्ते किसी वाहन आदि की चपेट में आकर घायल हो जाते हैं। किसी के पैर टूट जाते हैं, तो किसी का जबड़ा कुछ कुत्ते पैरालिसिस का शिकार होने से चल फिर नहीं सकते हैं। कुछ की आंखों की रोशनी चली जाती है। अभी आरती और प्रीतू के केयर सेंटर में कई पैर कटे श्वान अंधता और पैरालिसिस के शिकार डॉग है।

आरती के अनुसार बेजुबान वेलफेयर के नाम से स्ट्रीट डॉग केयर सेंटर बनाने के लिए नाल के पास जमीन ली है। इस पर भवन निर्माण के लिए जन सहयोग जुटा रहे हैं। यह शुरू हो जाएगा, तो शहर में एक भी श्वान उपचार के अभाव में तड़प-तड़प कर दम नहीं तोड़ेगा।

आरती और प्रीतू बताती है कि स्ट्रीट डॉग का कोई नाम नहीं होता। ऐसे में जब भी किसी बीमार या घायल डॉग को लाती है, तो सबसे पहले उसका नाम रखते हैं। अभी तीन महीने की पारूल, चार महीने का जॉनी, तीन महीने का हैप्पी, घूमरिया, चिंकी, रामलहरी आदि नाम के श्वान उनके पास है। इनके भोजन पर करीब बीस-पच्चीस हजार रुपए का मासिक खर्च आता है। रोजाना करीब दस किलो दूध मंगवाते हैं। जो छोटे श्वानों को दलिया में डालकर खिलाते हैं।

ऐसे हुई शुरुआत

आरती कहती हैं कि तीन साल पहले तक वह बेसहारा कुत्तों को रोजाना सुबह-शाम खाना खिलाने जाती थी। इस दौरान देखा कि कई बीमार और घायल कुत्तों को खाने से ज्यादा उपचार व देखभाल की जरूरत है। बस एक ठिकाना तलाशा और सड़कों पर बीमार घायल पड़े कुत्तों को लाकर पशु चिकित्सक की निगरानी में उपचार करवाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे लोग मदद को आगे आते गए। उनके काम से पुरानी गिन्नाणी निवासी प्रीतू और महेन्द्र सांखला भी जुड़ गए। प्रीतू एक निजी स्कूल में नौकरी करती है। सुबह-शाम और छुट्टी के दिन जितना समय मिलता है, इन बेसहारा कुत्तों की देखभाल करती है। आरती पहले जयपुर में प्राइवेट नौकरी करती थी। श्वानों के प्रेम में ऐसी रमी कि जॉब भी छोड़ दिया। वे बताती है कि इस काम में परिवार और रिश्तेदार भी बड़ा सहयोग करते हैं।

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