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बीकानेर,धरोहर को समय पर नहीं बचाया जाए, तो बुलंद इमारत भी समृद्ध विरासत की गवाही नहीं दे पाती है। अनदेखी हो, तो गौरवशाली इतिहास भी समय की रेत में दब कर रह जाता है। राजस्थान की धरोहरों को यदि हम समय रहते संवार नहीं पाए, तो इतिहास हमें उन्हें विकृत करने के लिए माफ नहीं करेगा। राजधानी जयपुर के परकोटे वाले हिस्से को विश्व के चुनिंदा सुनियोजित नगरों में से एक माना जाता रहा है। लेकिन, इसे सहेजने के लिए हम कितने चुस्त हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि परकोटे को सहेजने की योजना ही ग्यारह बरस में जाकर पूरी हुई। यूनेस्को ने जब गुलाबी नगर के चारदीवारी क्षेत्र को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया तब सरकार को फिर से परकोटे की सुध लेना याद आया। यूनेस्को से परकोटे को सहेजने का वादा किए भी दो साल गुजर गए। पिछले दिनों यूनेस्को की टीम जयपुर आई, तो शुरुआत में तो अफसरों ने इस दौरे को लेकर कोई गंभीरता तक नहीं दिखाई। मुख्य सचिव ने जब अफसरों को फटकार लगाई, तो स्वायत्त शासन सचिव ने परकोटे में जाकर कमान संभाली। जब तक यह टीम रही, तब तक अफसरों की तेजी भी दिखी। यूनेस्को की टीम ने जाते-जाते ठीक से सारसंभाल करने की हिदायत दी, तो परकोटे का स्पेशल एरिया हैरिटेज प्लान फाइलों से बाहर आ सका है।

अब दावा किया जा रहा है कि इसी तर्ज पर प्रदेश के अन्य शहरों में परकोटों की सारसंभाल की जाएगी। परकोटे को वर्ल्ड हैरिटेज साइट्स में बनाए रखने के लिए जिन सात कार्यों को किया जाना है, उनमें यह सबसे पहला काम है। बाकी के छह कार्य इसी स्पेशल एरिया हैरिटेज डवलपमेंट प्लान पर निर्भर हैं। देर आयद दुरुस्त आयद की कहावत पर अमल करते हुए सरकार और इसके कारिंदे समय रहते चेत जाएं, तो हम इतिहास और आने वाली पीढ़ियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी ठीक प्रकार से निभा सकेंगे। जयपुर ही नहीं, प्रदेश के कई दूसरे शहरों में ऐतिहासिक परकोटे और दूसरी धरोहरों की अथाह थाती है। अब बिना देर लगाए इनकी भी सुध लेनी होगी। यह भी ध्यान रखना होगा कि क्रियान्वयन में जयपुर जैसी देरी न हो। ये धरोहरें देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर प्रदेश के लिए विपुल आर्थिक संसाधन भी जुटाने वाली हैं। लाखों को रोजगार भी मिलता है। सरकार को इस तरफ और अधिक गंभीरता दिखानी होगी।

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