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बीकानेर,पहला सुख निरोगी काया को कहा गया है और प निरोगी रहने के लिए आवश्यक तत्वों में पेयजल को प्रमुख माना गया है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए शुद्ध जल बेहद आवश्यक है। इतना कुछ पता होने के बावजूद पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में दूषित पानी का क्रम थमा नहीं है। करीब दो दशक से प्रदेश में काबिज रही विभिन्न सरकारों ने पंजाब सरकार से पत्र व्यवहार किए। पंजाब के जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर आग्रह भी किए। बहुत बार मौके पर जाकर वहां के हालात भी देखे, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ। पंजाब एवं राजस्थान में एक ही दल या समान विचारधारा वाले दलों की सरकार भी रही है, लेकिन बात तब भी नहीं बनी। सरकार एवं जनप्रतिनिधियों के अलावा बहुत से सामाजिक संगठनों ने भी प्रयास किए। मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक भी पहुंचा। पंजाब पर जुर्माना भी लगा, लेकिन दूषित पानी का प्रवाह थमा नहीं।

अकेले राजस्थान की बात करें, तो प्रदेश के दस जिलों की ढाई करोड़ से अधिक आबादी इंदिरा गांधी नहर परियोजना के पानी का उपयोग करती है। इसके अलावा सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पश्चिमी राजस्थान, में तैनात सुरक्षा बलों को भी यही पानी पीना पड़ रहा है। दूषित पानी की समस्या से राजस्थान के दस जिलों के साथ-साथ पंजाब का मालवा क्षेत्र भी प्रभावित है। चिंताजनक बात यह है कि इस समस्या का पंजाब की सरकारें कोई ठोस समाधान नहीं खोज पाईं। इस बार थोड़ी उम्मीद की किरण इसीलिए नजर आती है, क्योंकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है। पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवा खुद पर्यावरण से जुड़े हुए हैं। जल प्रदूषण के खिलाफ पंजाब में समय-समय पर चली मुहिम के वे अगुवा भी रहे हैं। तीन साल पूर्व राजस्थान से गए प्रतिनिधिमंडल के साथ भी उन्होंने दूषित पानी के खिलाफ आवाज मुखर की थी। चूंकि यह गंभीरता उन्होंने विपक्ष में रहते हुए दिखाई। अब वे स्वयं विधानसभा अध्यक्ष हैं, तो उनसे उम्मीद की जा सकती है।

आम आदमी के स्वास्थ्य से जुड़ा यह मसला दो दशक से फुटबाल बना हुआ है। आखिर लोग कब तक दूषित पानी पीते रहेंगे। सरकारें कब तक यों ही पत्राचार या वार्ताएं करती रहेंगी? जनप्रतिनिधि एवं सामाजिक संगठन कब तक आंदोलन करते रहेंगे? अब यह समस्या स्थायी समाधान चाहती है।

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