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बीकानेर, अहिंसा परमोः धर्म का संदेश देने वाले भगवान महावीर की जयंती पर गुरुवार को विविध आयोजन होंगे। शोभायात्रा निकलेगी, मंदिरों में पूजन व अभिषेक व मंत्र जाप, सामूहिक एकासना, आयम्बिल सहित विविध तप, उपासरों में साधु-साध्वीवृृंद के प्रवचन होंगे। महावीर जयंती की पूर्व दिन बुधवार को गंगाशहर के तेरापंथ भवन में सामूहिक नवंकार महामंत्र का जाप किया गया। जाप मंें बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने सस्वर जाप कर वातावरण को भक्तिमय बना दिया। जैन पब्लिक स्कूल में भक्ति संगीत संध्या हुई।
जैन महासभा के तत्वावधान में सकल जैन समाज के सहयोग से दिगम्बर जैन नसियाजी व भीनासर की जवाहर विद्यापीठ से शोभायात्रा निकलेगी। यात्रा में जैन यूथ क्लब, कन्या मंडल, बालक-बालिका मंडल सहित विभिन्न जैन संगठनों के दल शामिल होंगे।
भगवान महावीर की जयंती से एक दिन पूर्व बुधवार को गंगाशहर के तेरापंथ भवन में जैन यूथ क्लब की अगुवाई में नवंकार महामंत्र का सामूहिक जाप का आयोजन रखा गया। क्लब के संरक्षक सुशील बैद, अध्यक्ष सत्येन्द बैद व पूर्व अध्यक्ष पारस डागा ने दीप प्रज्जवलित कर जाप का शुभारंभ किया। सुबह सात से शाम सात बजे तक चले जाप में बीकानेर, गंगाशहर, भीनासर के लगभग 3500 श्रावक श्राविकाआंें ने भाव विभोर होगर जाप किया । जाप स्थल पर जैन यूथ क्लब द्वारा सभी जाप करने वालों का पंजीयन कर भगवान महावीर की जयंती पर शुभकामनाएं दी।
’’णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणमं, णमो आयरियाण्ं, णमो उवज्झायाणं, णमो लौए सव्व साहूंणं’’ के माध्यम से पांचों पदों की अनुमोदना की गई। जाप में सम्पूर्ण विश्व कल्याण की भावना को सर्वोपरि रखा गया। संस्था उपाध्यक्ष हेमंत सिंगी ने बताया कि भगवान महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक पर गुरुवार को गंगाशहर के तेरापंथ भवन में लगभग 2000 श्रावक-श्राविकाओ द्वारा एकासना तप की आराधना की जाएगी।
धर्म का पहला तत्व सम्यक् दर्शन
रांगड़ी चौक के सुगनजी महाराज के उपासरे में जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ की वरिष्ठ साध्वीश्री शशि प्रभाजी म.सा. ने बुधवार को नवपद ओली पर्व के तहत सम्यक दर्शन पर प्रवचन किए। उन्होंने कहा कि धर्म के असली मर्म को समझकर धार्मिक बना जा सकता है। धर्म का पहला तत्व सम्यक् दर्शन है। सम्यक्् दर्शन के बिना प्राप्त ज्ञान मिथ्या रहता है। हृदय में देव, गुरु धर्म के प्रति अखंड श्रद्धा होने पर हमारे में सम्यक दर्शन का गुण आता है। सम्यक दर्शन यानि विचारों का शुद्धिकरण, अध्यवसायांें का निमलीकरण, भावनाओं का उर्ध्विकरण। सम्यक्् दर्शन से संसार के प्रति मोह कम हो जाता है तथा संयम, त्याग धर्म की क्रिया व भावना आराधना शुरू हो जाती है।

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