बीकानेर,बजट भाषण में जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एम आर आई वाह सिटी स्कैन तथा डायलिसिस जैसी महंगी जाचो को निशुल्क करने की घोषणा की तो उम्मीद बंधी थी कि इससे मरीजों व उनके परिजनों को खासी राहत मिलेगी। लेकिन, आधी अधूरी तैयारी औ बिना संसाधनों के ऐसी घोषणाओं को धरातल पर उतारना कितना मुश्किल “होगा, यह ट्रायल के तौर पर शुरू की गई निःशुल्क जांच व्यवस्था के शुरुआती दौर में ही सामने आ गई है।
यह बात सही है कि सरकार ने अपनी बजट घोषणाओं को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर कल्याणकारी राज्य के कर्त्तव्यों की दिशा में सार्थक पहल की है। लेकिन, जिस जांच व्यवस्था को सरकार ने मई से पूरी तरह से लागू करने का ऐलान किया है, उसे देखकर तो लगता है कि समुचित इंतजाम नहीं किए गए, तो यह लोगों की परेशानी बढ़ाने वाली व्यवस्था होते देर नहीं लगेगी। इन निःशुल्क सुविधाओं के शुरू होने के साथ ही सरकारी अस्पतालों में मरीजों की कतारें ऐसे लगने लग गई हैं, जैसे वोट डालते वक्त लगती हैं। लेकिन, संसाधनों पर गौर करें तो कुछ भी नया नहीं है। तमाम जांचें पुराने संसाधनों के भरोसे ही शुरू कर दी गई हैं। राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की स्थिति किसी से छिपी हुई नहीं है। ऐसे में निःशुल्क जांचों के दायरे को बिना तैयारी शुरू करने से संबंधित कार्मिक भी बेबस नजर आते हैं। पहले से ही स्टाफ की कमी के चलते अस्पतालों में जरा सी बात को लेकर मरीजों के परिजनों और चिकित्सकों के बीच हाथापाई की खबरें आती रहती हैं। सरकार सभी तरह की जांचों की निःशुल्क व्यवस्था को एक मई से पूरी तरह से लागू करने की बात तो कर रही है। बड़ा सवाल यह है कि क्या एक माह में वे व्यवस्था सुधर जाएगी, जो बरसों से नहीं सुधरी।
होना तो यह चाहिए था कि सरकार पहले बड़े अस्पतालों में और बाद में दूसरे सभी सरकारी अस्पतालों में जरूरी संसाधन जुटाती। इन सुविधाओं के शुरू होने में आने वाली समस्याओं का आकलन करती। सिर्फ घोषणाएं करने से व्यवस्था में कुछ सुधार होगा, यह उम्मीद पालना ठीक नहीं। योजना अच्छी है, लेकिन इसके लिए संबंधित अस्पतालों की मेडिकल रिलीफ सोसायटी को व्यापक अधिकार देकर सुविधाएं जुटानी चाहिए। अन्यथा संसाधनों का टोटा समस्याओं को बढ़ाने वाला ही होगा।