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बीकानेर,अप्रेल शुरुआत में ही गर्मी ने पूरे प्रदेश में अचिंताजनक तस्वीर पेश कर दी है। भीषण गर्मी और पानी की बढ़ी मांग से जलापूर्ति व्यवस्था चरमराने लगी है। शहर से लेकर गांवों में त्राहि-त्राहि होने लगी है, जबकि अभी मानसून आने में करीब माह हैं। प्रदेश के अधिकांश शहरों में पेयजल संकट के चलते जलापूर्ति में कटौती शुरू हो गई है। पाली शहर में तो दो दिन बाद वाटर ट्रेन आने लगेगी। जवाई बांध में पानी बीतने से नौबत से समूचे पाली जिले में भीषण पेयजल संकट के आसार बन गए हैं। आमतौर पर प्रदेश में मई और जून में भीषण गर्मी और लू का दौर रहता है, लेकिन इस बार अप्रेल के पहले पखवाड़े में ही प्रदेश में 42 से 45 डिग्री के बीच तापमान चल रहा है। आने वाले दिनों में कई शहरों में तापमान 50 डिग्री तक जाने की आशंका जताई जा रही है। गर्मी की तपन कम करने के लिए कूलरों का इस्तेमाल करने से भी पानी की खपत बढ़ रही है।

तेज गर्मी के कारण अधिकांश जल स्रोत सूख गए हैं या सूखने के कगार पर हैं। ऐसे में मांग की तुलना में जल स्रोतों से पानी की आवक बहुत कम हो गई है। अधिकांश शहरों में दो से लेकर 6 दिन के अंतराल पर जलापूर्ति की जा रही है। राज्य सरकार ने प्रदेश में करीब 45 हजार गांवों में पेयजल संकट माना है। इन गांवों में जल जीवन योजना के तहत पानी पहुंचाने की योजना भी बनाई गई है। जरूरत के हिसाब से एक विधानसभा क्षेत्र में 40 हैण्डपम्प और 10 नलकूप लगाने की मंजूरी भी दी गई है, लेकिन यह संकट का स्थायी समाधान कतई नहीं है। पिछले सालों में पेयजल संकट के निराकरण के लिए कई योजनाएं बनाई गई हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश आधी-अधूरी हैं। पूरा काम नहीं होने के कारण इनका लाभ आमजन को नहीं मिल पा रहा। नागौर में इंदिरा गांधी लिफ्ट परियोजना, भीलवाड़ा जिले में चम्बल परियोजना का कार्य आधा-अधूरा है। ईस्टर्न कैनाल का काम तो सियासी बयानबाजी में ही फंसकर रह गया है। प्यास लगने पर कुआं खोदने की हमारी सरकारों की आदत हो गई है। योजनाएं बनाने के नाम पर ही करोड़ों रुपए फूंकने का काम होता आया है। इस प्रवृत्ति की बजाय सरकार को जलसंकट का स्थायी समाधान करना चाहिए। जो योजनाएं अधूरी हैं, उनके लिए पर्याप्त बजट और इनके क्रियान्वयन पर सतत निगरानी रखनी होगी। ऐसा होने पर ही लोगों को जल संकट से राहत मिल सकेगी।

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