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बीकानेर, प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कहीं नाराजगी तो कहीं गुटबाजी से पार्टी कमजोर हो रही है। मंत्री से पद से हटाए जाने के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के हाथ पिछले दो साल से खाली हैं। सरकार में होने के बावजदू कांग्रेस कुनबे में कलह ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है।

सियासी गलियारों में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखने वाले राजनीतिक लोगों के अनुसार सचिन पायलट को कोई पद नहीं मिलना, आने वाले चुनाव में नुकसानदायक साबित हो सकता है। इससे मिशन 2023 से पहले गुटबाजी को हवा मिल रही है। माना जा रहा है कि सचिन पायलट अगर किसी पद पर नहीं आए तो गुटबाजी का थमना आसान नहीं होगा।
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत करने पर सचिन पायलट सहित 3 मंत्रियों रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह को 14 जुलाई 2020 को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था। उसके बाद से ही पायलट के हाथ खाली हैं। हालांकि इस दौरान आलाकमान ने गहलोत और पायलट कैंप में सुलह कराई लेकिन ये सुलह जमीनी स्तर पर नहीं देखी गई। कांग्रेस पार्टी आलाकमान ने पायलट समर्थक विधायकों को मंत्री भी बना दिया। समर्थकों को बंपर राजनीतिक नियुक्तियां भी दे दी गर्इं लेकिन पायलट के हाथ खाली रहे।

गौरतलब है कि सचिन पायलट राजनीति में आने के बाद किसी न किसी पद पर रहे हैं। वर्ष, 2004 में सचिन पायलट पहली बार दौसा से सांसद बने। इसके बाद अजमेर से सांसद बनकर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने। लेकिन वर्ष 2020 में सीएम गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। गहलोत एवं पायलट कैंप में सुलह होने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को एडजस्ट करेगा। हाल ही में पांच राज्यों में कांग्रेस के निराशाजनकर प्रर्दशन के बाद पायलट को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की चर्चा चली थी। इसके बाद कांग्रेसी नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने पायलट के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी।

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