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बीकानेर,दिव्यांग सेवा संस्थान के संस्थापक जेठाराम ने मुक बधिर मंदबुद्धि दृष्टिबाधित बच्चों की शिक्षा प्रशिक्षण पुनर्वास और व्यवसाय से बच्चों की शिक्षा को लेकर हमारे प्रशिक्षण के पश्चात संपूर्ण समाज के सहयोग से 6 अप्रैल 2016 को मात्र 3 बच्चों से शुरू किया 3 बच्चों को लेकर संस्था रूपी बीज को लगाया आज धीरे-धीरे आप सब के सहयोग से 60 बच्चे शिक्षा से फलते फूलते जा रहे हैं

हमारा उद्देश्य:-
कोई दिव्यांग बच्चा आत्मनिर्भर से पिछे न रहे, कोई अनाथ बच्चा भीख मांगकर पेट न पाले, कोई बेसहारा बच्चा मजदूरी करने को मजबूर न हो। और वंचित बच्चों को पढऩे बढऩे व जीने के अनुकूल अवसर प्राप्त हों, ऐसी ही सद्इच्छाओं के साथ 6 साल पहले दिव्यांग सेवा संस्थान खोला गया।
गांव ढाणियों से वंचित दिव्यांग बच्चों को यहां संस्थान से जोड़ा जाता है

राज्य सरकार से नही मिला अनुदान :-
दिव्यांग सेवा संस्थान को राज्य सरकार के द्वारा कोई अनुदान प्राप्त नहीं हो रहा है यह संस्थान पूर्ण रूप से महान दानी सज्जनपुरुषो के सहयोग से संचालित हैं

संस्थान का स्वयं की जमीन व बिल्डिंग नही है:-
संस्थान स्वयं की जमीन व बिल्डिंग नही होने के कारण हम और भी बच्चों को नही पढ़ा सकते है। संस्थान को बार बार स्थान बदलना पड़ रहा है

संस्थान का कार्य:-
संस्थापक जेठाराम ने बताया की हम बच्चों को शब्दों का अर्थ समझाते हैं लेसन तैयार करते हैं हमें क्या और कैसे सिखाना है वह तैयारी हम पहले से करते हैं। उसके बाद हम क्लास में जाते हैं लेसन पढाने से पहले शब्दो को कैसे सिखाना है हमें क्या-क्या जरूरत रहेगी चित्र, वीडियो, रियल चीजे, भृमण, एक्टिंग, विजिट आदि के होने के बाद शिक्षा देते हैं।
शिक्षा के साथ-साथ स्पीच थेरेपी, कंप्यूटर, योग, सिलाई, राखियां बनाना, नृत्य, लिफाफे बनाना, स्वागत थालिया, मेहंदी डिजाइन, ब्यूटी पार्लर, केक बनाना, कराटे, कुकिंग का काम, आत्मरक्षा के गुर, खेल आदि सिखाते हैं।
खेल में दिव्यांग सेवा संस्थान के मूक बधिर बच्चे अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर भारतीय स्तर पर 2 बार लखनऊ से, 3 बार कोलकाता व नागपुर से प्रथम स्थान प्राप्त करके राजस्थान बीकानेर शहर का नाम रोशन किया है।

दिव्यांगों को रोजगार मिले :-
रोजगार हम इन बच्चों को रोजगार की तरफ धकेलते हैं यह बच्चे कुछ ना कुछ सीख कर अपना गुजारा स्वयं कर सके किसी पर निर्भर ना रहे। वर्तमान 10 बालिकाएं 5 बालक सिलाई करके अपनी आजीविका चला रहे हैं और 5 बच्चे रिलायंस व टाटा बड़ी बड़ी कंपनियों में जॉब करके अपना घर चला रहे हैं।

पर्यावरण का देते सन्देश:-
जेठाराम ने बताया कि पेड़ आदमी का जीवन है। ये लगाना हम सब का कर्तव्य है। तो हर साल 1000 – 1500 पौधे लगाते हैं बच्चों को पर्यावरण का संदेश देते हैं।

सीमित संसाधनों के बावजूद भी अच्छी मेहनत के कारण दिव्यांग सेवा संस्थान में राजस्थानी नहीं दूसरे राज्यों से भी बच्चे पढ़ने आते हैं।

संस्थापक जेठाराम ने बताया कि दिव्यांग बच्चों को डिजिटल प्रमाण पत्र, रेलवे, बस पास, पैशन चालू करवाना, राज्य सरकार से मिलने वाली सुविधा दिलाना।

संस्थापक जेठाराम ने कहां की मेरा अनुभव ये कहता है इस बच्चों के अंदर वो प्रतिभाएं छिपी है उनके विकास तभी संभव है जब परिवार, शिक्षक एवं समाज उनके प्रति सकारात्मक मनोवृति विकसित करें।

संस्थापक जेठाराम ने बताया कि दिव्यांग बच्चों की वैवाहिक समस्या के निदान हेतु संस्थान द्वारा सामूहिक विवाह समारोह भी आयोजित किया जा रहा है। 7 फरवरी 2022 को दिव्यांग सेवा संस्थान के मूक बधिर पंकज व कंचन शर्मा वैवाहिक बंधन में बंधे।
ये बच्चे संस्थान में अध्ययन कर रहे हैं।

राजस्थान के आगामी कार्य:-
मुक बधिर बालिकाओं के लिए बीकानेर धरती पर सुंदर सा प्रयास करेंगे जिसमें दूरदराज की बालिका यहां रह कर शिक्षा के साथ-साथ रोजगार प्राप्त करेगी।

संस्थान को परेशानी से सामना करना पड़ रहा है:-
6 सालों से राज्य सरकार से अनुदान को तरसती रही है।
संस्थान बड़ी नहीं है संस्थान के द्वारा किए गए कार्य बड़े है। स्वयं की जमीन नहीं होने के कारण छोटे से मकान में और भी बच्चों को एक साथ नहीं पढ़ा पाते हैं। क्योंकि मकान छोटा है। वर्तमान में जमीन में बिल्डिंग की बहुत आवश्यकता है। क्योंकि हम और भी बच्चों को एक साथ शिक्षा प्रशिक्षण नही दे सकें ।
राज्य सरकार के अनुदान बिना इतना मैनेजमेंट अच्छे से नहीं हो पाता।

पिताजी से मिले संस्कार:-
जेठाराम ने कहां की मेरे पिताजी नारायण राम बारुपाल अपना जीवन शिक्षा में दूसरों की भलाई के लिए वह त्याग रहे हैं। नशा मुक्ति, स्कूल के लिए दो बीघा जमीन दान, धर्मशाला बनाई, पानी के लिए 2 ट्यूबवेल बनाई, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले 10 परिवारों को जमीन देकर उनके घर बनवाये।
3 अगस्त 2015 को पिताजी ने 13 बीघा जमीन बेचकर 6 अप्रैल 2016 को बीकानेर में दिव्यांग सेवा संस्थान की शुरुआत की।

दिव्यांग सेवा संस्थान ने मुझे इतना कुछ दिया जिसकी कल्पना करना मुश्किल है। दिव्यांग सेवा संस्थान शुरू करने से पहले मेरा जीवन सिर्फ अपनी उदर पूर्ति के लिए चल रहा था। एक बेचैनी थी, क्या कर रहा हू इस धरती पर आकर। क्या यूंही चला जाऊंगा? मानव जन्म मिला और बिना किसी की सेवा के यूंही चले जाए तो इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। मुझे एक ऐसे प्लेटफार्म की जरूरत थी जहा पर मुझे मानसिक शांति मिल सके और जीवन को नया आयाम मिले। पद, नाम, रुतबे के लिए अनेक सांसारिक माध्यम है। मगर जीवन में एक ऐसा माध्यम चाहिए था जहा पर नि:स्वार्थ रूप से लोगो की सेवा कर खुद को पाने का प्रयास कर सकू। मेरे जीवन को ऐसे उलझन की घड़ी मे प्रभु ने मुझे सही समय पर रास्ता दिखाया

दिव्यांग सेवा संस्थान में सेवा करने का मौका मिला। विगत 6 साल से दिव्यांग सेवा संस्थान में जो संतुष्टि मुझे मिली उसकी व्याख्या करना संभव नहीं है। मुझे मानसिक सुख प्राप्त हुआ तो स्वत ही बिना अतिरिक्त प्रयास के भौतिक उन्नति भी हुई। मेहनत के माध्यम से अनेक सेवा भावी इंसान जुड़े और उन्होंने अपने जीवन को नई दिशा दी है। यूही हम एक दिए से दिया जलाएं और निर्धन और दीन दुखी जनों की तकलीफ को दूर करे। इसी शुभ आशा के साथ- जेठाराम संस्थापक व सचिव दिव्यांग सेवा संस्थान।

मुख्य अतिथि अब्दुल रहमान विशिष्ट अतिथि रोहिताश कांटिया, असरफ, यूनस अली, मोहम्मद बबली, रफीक अब्बासी, सोनी जी, साहिल, अनिल शर्मा, रचना कुमावत, गौरव दुबे आदि मौजूद रहे।

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