बीकानेर,आज समाज के सामने अनेक चुनौतियां मुंह बाए खड़ी है, इनमें मैं नशे को सबसे बड़ी चुनौती मानता हूँ।यह किसी एक समाज,प्रदेश अथवा देश का संकट नहीं है यह एक वैश्विक चुनौती है। हमारे धर्मग्रंथों और संतों की वाणियों में इस मनुष्य शरीर को देवदुर्लभ बताया है क्योंकि इसके द्वारा ही भगवदप्राप्ति संभव है, ऐसी अमूल्य निधि का नशे के द्वारा नाश किया जा रहा है। हमारे नौनिहालों की यह उम्र जोश से तो भरी होती है परंतु होश कम होता है, विडम्बना यह है की यह होश देने वालों की ये सुनते नहीं और नशे के ऐसे कुचक्र में फंस जाते हैं जहां मौत ही उन्हें निकालती है। गुरु जांभोजी महाराज ने अफीम, तंबाकू,भांग और शराब इन चार नशों के निषेध के लिए चार अलग-अलग नियम बनाकर इसे बहुत गंभीरता से लिया था परंतु अब बात उससे बहुत आगे निकल चुकी है। नशीली गोलियों,सिरप,स्मैक, चिट्ठा आदि ऐसे नशे है जिसका एक बार सेवन कर लेने पर फिर इनसे पीछा नहीं छूटता। जोशीले, भोले-भाले नवयुवक पहली बार जिज्ञासावश ही इन नशों का सेवन शुरू करते हैं और कुछ ही समय में इसके आदी बन जाते हैं। मां-बाप को पता चलता है तब तक गाड़ी बहुत दूर निकल जाती है जहां से लौटना मुमकिन नहीं तो मुश्किल अवश्य होता है। विभिन्न प्रकार के दबावों में नशे का आदी वह युवक नशा छोड़ भी दे तो तब तक नशा उसके शरीर की अपूरणीय क्षति कर चुका होता है। रसायनिक खाद, पेस्टीसाइड, बाजार के मिलावटी खाद्य पदार्थों, पिज़्ज़ा-बर्गर, कोल्डड्रिंक, चाय-कॉफी आदि के सेवन से शरीर तो पहले ही कमजोर और रोग-प्रतिरोधक क्षमता से हीन हो चुके हैं।दूध,दही,घी,घर का शुद्ध खाने वाले बलिष्ठ शरीर अब कहां रहे हैं और ऊपर से यह घातक नशे का प्रहार। समाज बहुत बड़ी आपत्ति में हैं।नशा करने वाले युवाओं के परिवार खत्म हो रहें हैं, मां-बाप का रो-रो कर बुरा हाल है। आजकल अधिकांश घरों में एक ही लड़का है और वह भी नशे की चपेट में है तो उस परिवार पर क्या गुजरती है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे आपत्तिकाल में अकादमी की विशेष भूमिका बनती है। संस्कारों का संकट तो पहले ही एक बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने उपस्थित था जिससे हम संस्कार शिविर और जाम्भाणी साहित्य ज्ञान परीक्षा के द्वारा किसी प्रकार निपटने का प्रयास कर रहे थे परन्तु अब यह नशे का भस्मासुर सब कुछ चौपट करने पर आमादा है।समस्या जितनी सोची जा रही है उससे बहुत ज्यादा विकराल है, समाज के प्रबुद्ध समय पर सचेत नहीं हुए तो इसके और विकराल होने में समय नहीं लगेगा। इसमें अकादमी अपने प्राथमिक प्रयास में 6 से 8 अप्रैल तक एक त्रिदिवसीय नशामुक्ति वेबिनार का आयोजन कर रही है जिसमें पहले दिन संत-महात्मा अपने प्रवचनों में नशे के धार्मिक और सामाजिक नुकसान पर प्रकाश डालेंगे। दूसरे दिन डॉक्टर साहिबान इसके द्वारा होने वाली शारिरिक हानि के बारे में बताएंगे और तीसरा दिन कविगणों का होगा, कवियों की वाणी में एक विशेष क्षमता होती और वे मार्मिक शब्दों के द्वारा मूल पर चोट करते हैं जो अंतर्मन को झकझोर देता है। मैं सभी से विशेषकर तरुण और युवाओं के मां-बाप तथा अभिभावकों से निवेदन करता हूँ कि वे स्वयं भी यह त्रिदिवसीय वेबिनार अटेंड करे और अपने बच्चों को भी इसमें शामिल करें। ऐसी विषम परिस्थिति में मां-बाप का सावचेत रहना बहुत जरूरी है, क्योंकि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। ज़ूम की सीमित क्षमता होने के कारण वहां न जुड़ सकें तो अकादमी के फेसबुक पेज पर जुड़ने का कष्ट करें
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