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बीकानेर,चर्चित मुहावरे पापड़ बेलना हास्य भले ही कठोर परिश्रम से हो लेकिन सच तो यह है की पापड़ बनाने में भी कई तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं खास तौर पर पापड़ को जायकेदार व कड़क बनाने वाली साजी को तैयार करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है साजी के कारण पापड़ में लंबे समय तक तो फेफुंद भी नहीं लगती गौरतलब है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान से आयात होने वाली साजी महंगी होने के कारण इसका स्थानीय विकल्प खोजा गया है यह काफी हद तक कारगर साबित हुआ है साजी की सर्वाधिक खपत बीकानेर में होती है जहां सैकड़ों पापड़ के कारखाने हैं श्री गंगानगर वह बीकानेर जिले में सरहद के पास तारबंदी के नजदीक साजी के पौधे की पैदावार अधिक होती है विशेषकर श्रीगंगानगर जिले के श्रीकरणपुर के नंगी रायसिंहनगर के खाटा घडसाना तथा बीकानेर के खाजूवाला आदि क्षेत्रों में सजी के पौधे बहुतायत  है इन दिनों सरहदी क्षेत्रों में साजी के पौधे काट कर दे लगा दिए गए हैं साथ ही नए स्तर पर बिजाई भी कर दी गई है इसकी फसल तैयार होने में लगभग 1 साल का समय लगता है

पापड़ के लिए साजी का अहम योगदान है लेकिन इसको बेचने के लिए कोई मंडी नहीं है बीकानेर में व्यापारी किसानों से सीधे संपर्क कर साजी की खड़ी फसल का सौदा कर लेते हैं और अपने स्तर पर तैयार करवाते हैं 15 हजार प्रति बीघा के हिसाब से इसका सौदा होता है जब की साजी बनने के बाद इसकी कीमत 30 से 40 हजार प्रति क्विंटल तक पहुंच जाती है जानकारों की माने तो एक बीघा में करीब 1 क्विंटल साजी बन जाती है।

बंजर पड़ी क्षारीय व अनुपजाऊ भूमि में साजी की फसल को लेकर किसानों का रुझान बढ़ा है। वर्ष में केवल एक ही फसल होती है। बीते साल सितंबर-अक्टूबर में साजी की कटाई के बाद फरवरी माह में फिर से फुटान हो गया है। यह फसल आगामी सितंबर-अक्टूबर महीने में फिर से कटाई योग्य हो जाएगी। साजी की पैदावार शुष्क मौसम में अधिक होती है। इसकी बुवाई बरसात से पहले जमीन में बीजों का छिड़काव कर की जाती है। पौधा तैयार कर पौधरोपण भी किया जाता है। क्यारियां बनाकर या गढ्डे खोदकर भी इसकी बुवाई की जाती है। अधिक बरसात होने पर इसकी पैदावार कम होती है।

साजी झाड़ प्रकृति की फसल है। इसके लिए शुष्क जलवायु और क्षारीय भूमि उपयुक्त रहती है। बिजाई खरीफ में और कटाई रबी के सीजन में होती है। इसकी बार-बार बिजाई नहीं करनी पड़ती है। ऊपर से काटते हैं तो फिर से फुटान हो जाता है। इसका पांच साल का फसल चक्र होता है।

सत्यपाल सहारण, सहायक कृषि अधिकारी (उद्यान) रायसिंहनगर

एक बीघा भूमि में दो से ढाई क्विंटल साजी पैदा हो जाती है। खर्च निकालकर करीब 15 हजार रुपए का फायदा मिल जाता है।

बहाल चंद व बलराम कड़वासरा, किसान

साजी की फसल में प्रति मुरब्बा लगभग 50 क्विंटल प्रतिवर्ष उपज के हिसाब से छह से सात लाख रुपए की आय हो जाती है।

आईदान, गांव खाट्टा

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