बीकानेर,भुजिया, पापड़ और नमकीन के लिए फेमस बीकानेर को एक मीठे स्वाद के लिए भी जाना जाता है। चाशनी में घुली और सधी मिठास वाले बीकानेर के स्पंजी रसगुल्लों के दीवाने भी दुनियाभर में हैं। करीब 100 साल पुराना यह जायका आज बंगाली रसगुल्लों को पीछे छोड़ भारत के लगभग हर हिस्से में पहुंच रहा है। दूध से बनने वाला रसगुल्ला हर महीने करोड़ों का बिजनेस तो कर ही रहा है, साथ ही हजारों परिवारों का पेट भी पाल रहा है। यह ऐसा जायका है जिस पर गाने तक बन चुके हैं। तो आइए राजस्थानी जायका की कड़ी में इस बार आपको ले चलते हैं बीकानेर की उन गलियों में जहां लाखों क्विंंटल रसगुल्ले रोज तैयार होते हैं.
बीकानेरी रसगुल्लों का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। मिठाई की दुकानों पर दूध बच जाता था। गर्मी ज्यादा होने के कारण ये दूध फट जाता। ऐसे में हलवाई दूध गर्म कर उसका छैना बना लेते थे। इसी छैने पर चीनी लगाकर कारीगर खाते थे। धीरे-धीरे फटे हुए दूध पर कई तरह के प्रयोग किए। छैने को चीनी की चाशनी में डालकर उबाला गया तो इसका स्वाद बढ़ता गया। देखते ही देखते छैने ने सफेद रसगुल्ले का रूप ले लिया। सभी को इसका स्वाद भी बहुत पसन्द आने लगा। यहां तक कि ये मिठाई राजपरिवार की पसंदीदा बन गई। स्वाद के साथ बढ़ती डिमांड ने बीकानेरी रसगुल्ले को ब्रांड बना दिया। बीकानेर में रसगुल्ले को बाजार में लाने का श्रेय छोटू-मोटू हलवाई को जाता है।पीढ़ियां इसी काम में लगी हैं
बीकानेरी रसगुल्ला को देश दुनिया में पहचान देने के लिए बीकानेर की कई पीढ़ियां काम कर रही है। छोटू-मोटू जोशी के बाद उनके परिवार के ही गोपाल जोशी (पूर्व विधायक) और अब उनके बेटे और पोते इसी काम में लगे हैं। वहीं किशनलाल माली के बाद उनके बेटे रामेश्वरलाल, सत्यनारायण, जेठमल भी इसी काम में लगे हैं। किशनलाल के पोते मोहित सिंगोदिया बताते हैं कि हमारी ही तरह बीकानेर में कई परिवार हैं, जिनकी तीन से चार पीढ़ियां रसगुल्ला बनाने का काम कर रही हैं।कैसे बनता है रसगुल्ला
गाय के ताजा दूध को गर्म करने के बाद नमकीन पानी में डाला जाता है। ये नमकीन पानी दूध को फाड़ देता है। इसके बाद फटे दूध से पानी को अलग कर दिया जाता है। अब छैना तैयार कर लिया जाता है। ठंडा होने के बाद इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाई जाती हैं। ये गोलियां बाद में उबलती चाशनी में डाली जाती हैं। एक निश्चित समय के बाद इसे हिलाया जाता है। कभी ठंडा और कभी गर्म पानी डालकर इसे तैयार करते हैं ताकि और ज्यादा स्पंजी हो सके। छैने की गोलियों से लगभग डबल आकार में रसगुल्ला बनकर तैयार हो जाता है। अब इसे चाशनी में डुबोकर रख देते हैं।स्पंजी है बीकानेरी रसगुल्ला
रसगुल्ले को स्पंजी बनाने की तकनीक बीकानेरी कारीगरों के पास ही है। आप हाथ में लेकर इसे पूरी तरह निचौड़ सकते हैं। ऐसे में इसका मिठास लगभग पूरा खत्म हो जाएगा। लेकिन छैने का स्वाद फिर भी रहता है। यही वजह है कि डायबिटिक पेशेंट भी लो शुगर स्वीट्स में बीकानेरी रसगुल्ला ही पसंद करते हैं।करोड़ों का काराबोर
बीकानेर का रसगुल्ला अब यहां का लघु उद्योग बन चुका है। खासकर बीकाजी, लालजी, रूपजी, लोट्स, रस-रसना, सागर, अंबरवाला, किशन स्वीट्स रसगुल्ले के बड़े कारोबारी हैं। रसगुल्ले की जिले में करीब 30 बड़ी इकाइयां हैं। यहां बड़े स्तर पर पैकेजिंग कर विदेशों में भी माल सप्लाई होता है। साथ ही 100 से ज्यादा लोकल स्वीट्स शॉप पर इसकी रिटेल बिक्री होती है। बीकानेर शहर के अलावा नोखा, श्रीडूंगरगढ़ सहित तहसीलों में भी रसगुल्ला बनता है। इससे करीब 5000 से ज्यादा लोगों को बीकानेर में ही रोजगार मिल रहा है। सालाना कारोबार 400 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है।