बीकानेर,शहर के अलावा अब जिले के छोटे-बड़े कस्बों में भी नशा प्रवृति बढ़ने लगी है लेकिन पुलिस- प्रशासन इस पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। पुलिस व प्रशासन इन दिनों औपचारिता के नाते नशा मुक्ति अभियान भी चला रहे हैं लेकिन उसका भी कहीं कोई असर नजर नहीं आ रहा है। अभियान केवल स्कूलों तक सीमित है, जहां अभियान का औचित्य ही नजर नहीं आता। यदि प्रशासन व पुलिस को अभियान को सही दिशा देनी है तो कॉलेज स्तर या मोहल्लों में कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिये ताकि युवा व अभिभावक नशे के नुकसान को समझ सकें ।
ऐसा कोई दिन नहीं, जब नशे से नाश होते परिवार की कहानी इन दिनों सुनने को न मिलती हो । किशोर, युवाओं से लेकर बड़े- बुजुर्ग तक नशे की चपेट में है। ऐसा भी नहीं है कि पुलिस के हत्थे नशा बेचान करने वाले नहीं चढ़ रहे, लेकिन आज तक कोई बड़ा डीलर या मुख्य आरोपी कभी पकड़ में नहीं आया। पुलिस केवल नशा बेचान करने वाले मध्यस्थों को पकड़ रही है लेकिन मुख्य सरगनाओं तक पहुंचने में अब तक नाकाम रही है। सूत्र बताते हैं कि इसकी मुख्य वजह पुलिस पर अप्रत्यक्ष राजनीतिक शिकंजा और नशा बेचान करने वालों को अप्रत्यक्ष राजनीतिक संरक्षण है। यही वजह है कि फौरी तौर पर कार्यवाही तो दिखती है लेकिन मुख्य सरगना के पकड़े जाने की खबर कभी नहीं मिलती। क्योंकि यही सरगना या तो स्वयं राजनीति से जुड़े लोग हैं या उनकी सरपरस्ती पर पलने वाले उनके गुर्गे। इनकी बदौलत श्रीगंगानगर जिला नशे का बनता जा रहा गढ़ बनता जा रहा है। पिछले कुछ माह तक चर्चा आम थी कि शहर में नशा बढ़ता जा रहा है और यहीं नशे की मुख्य सप्लाई होती है। लेकिन अब लग रहा है कि हालात पूरे जिले में ही बिगड़े हुये हैं। यही वजह है कि अब जिला मुख्यालय के अलावा जिले के छोटे कस्बों में भी नशा आसानी से उपलब्ध हो रहा है। विगत दिनों पुलिस की कार्यवाही से इसकी पुष्टि होती है कि अब नशा शहरी क्षेत्र से निकल कर गांव-कस्बों तक पहुंच गया है। बीते दिनों में पुलिस ने अनेक ऐसी कार्यवाही की है जिनसे साबित होता है कि अब नशा गांवों में पहुंचने लगा है। यही नहीं चिट्टा आदि के साथ ही दवाओं का नशा भी आसानी से गांवों में उपलब्ध हो रहा है। निश्चित ही इस गंभीर मसले को लेकर सामाजिक संगठनों सहित विपक्ष को आवाज बुलंद करनी चाहिये ताकि नशे पर अंकुश लग सके। अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब यही नशा राजनीतिक लोगों से लेकर सामान्य घरों के युवाओं को घेरता नजर आयेगा।