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बीकानेर, कोरोना संक्रमण और मौसमी बीमारियों के दौर में लोगों की जान के दुश्मन बने झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ अब चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की से सख्ती जायेगी। चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने इसके लिये बीकानेर समेत प्रदेश भर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को कार्यवाही के निर्देश दिये है। कार्यवाही में छोलाछाप बगाली डॉक्टरों पर शिकंजा कसा जायेगा। चिकित्सा मंत्री ने इस मामले में तल्खी दिखाते हुए निर्देश दिये कि यह प्रदेश में कहीं भी झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज से अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है तो उसके लिए

सीएमएचओ तथा बीसीएमएचओ की जिम्मेदारी तय कर उनके निलंबन की कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने झोलाछाप डॉक्टरों खिलाफ मुकदमें दर्ज करवाने के निर्देश देकर कार्रवाई के लिए कहा गया है। बताया जाता है कि विधानसभा सत्र में कांग्रेस के ही एक विधायक ने प्रदेश में झोलाछाप डॉक्टरों को लेकर सवाल उठाया था। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए चिकित्सा मंत्री ने अब ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ सख्ती बरतने के निर्देश दिये है जो झोलाछाप की श्रेणी में आते है। चिकित्सा जगत से जुड़े सूत्रों के अनुसार बीकानेर में शहर समेत गांवों- कस्बों में सालों से झोलाझाप डॉक्टर और बंगाली डॉक्टर क्लिनिक चला रहे हैं। दवाओं के साथ वे स्टेरॉयड जरूर देते हैं जो बूस्ट का काम करता है ये तुरंत आराम तो दिलाता है लेकिन घातक इतना है कि शरीर को खोखला भी करता है। कोरोना आपदा के दौर में कई लोगों में सामने आई ब्लैक फंगस महामारी स्टेरॉयड की ही देन मानी जा रही है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार प्राईवेट होस्पीटल में मंहगे इलाज और राजकीय होस्पीटल में इलाज के लिये दर दर भटकने की पीड़ा से बचने के हजारों लोग कम रुपए में जल्दी ठीक होने का लालच देखकर उनके पास जाते हैं एवं बड़ी बीमारी साथ में ले आते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देने वाले कंपाउंडरों ने भी गांवों में बड़े अस्पताल खोल लिए हैं एवं बड़े फिजीशियन के माफिक प्रैक्टिस करते हुए लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। बीकानेर में कई छोलाछाप डॉक्टर तो चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की टीमों द्वारा पकड़े भी जा चुके है लेकिन इनके खिलाफ कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं होने के कारण जिले में छोलाछाप डॉक्टरों नेटवर्क टूट नहीं रहा है।

बीकानेर के ग्रामीण इलाके छोलाछाप डॉक्टरों के हॅब बने हुए है। ग्रामीण क्षेत्र में पर्याप्त चिकित्सा सेवा की व्यवस्था नहीं होने के कारण ग्रामीण इन झोला छाप नीम-हकीम डॉक्टरों के पास जाने को मजबूत हैं। इसके अलावा सस्ते इलाज के चक्कर में भी ये लोग बिना डिग्री डिप्लोमा के क्लीनिक संचालित कर रहे झोलाछाप डॉक्टरों के पास पहुंच जाते है। झोलाछाप डॉक्टरों ने अमूमन गांवों में अपना अस्पताल खोल रखा है। जहां वह कम पैसों में मरीज का उपचार कर उनके जीवन से खिलवाड़ करने में लगे हैं। लेकिन लंबे समय से संबंधित विभाग की ओर से इनके खिलाफ कार्रवाई न किए जाने से इनकी संख्या में हर साल इजाफा हो रहा है।

मालूम हो कि हाईकोर्ट ने ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज पर रोक लगाने राज्य शासन को निर्देश दिए थे। इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में खुलेआम झोलाछाप डॉक्टर्स मरीजों का इलाज कर रहे हैं। स्थिति यह है कि इनके पास कोई डिग्री है न कोई इलाज करने का लाइसेंस है फिर भी लोगों का इलाज कर रहे है। यह सब स्वास्थ विभाग की अनदेखी एवं निष्क्रियता को सामने लाता है। जब झोलाछाप डॉक्टर्स के इलाज से मरीज के साथ कोई घटना घटित होती है। तब प्रशासन और स्वास्थ विभाग जागता है। पता चला है कि कुछ ऐसे झोलाछाप भी हैं, जो बड़े डॉक्टरों के नर्सिंग होम में कुछ दिन कंपाउंडरी करने के बाद अब क्लीनिक चला रहे हैं। वहीं मेडिकल साइंस और दवा के बारे में कोई जानकारी न होने के बावजूद झोलाछाप हर मर्ज का शर्तियां इलाज करने का दावा करते नहीं थकते। इनसे इलाज कराने वाले लोगों को फायदा तो नहीं होता, बल्कि उनका मर्ज और बढ़ जाता है। कई बार जान पर बन आती है।

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