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बीकानेर,अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के जिला सचिव व राजस्थान राज्य कमेटी के सचिव मंडल एडवोकेट बजरंग छींपा ने पेश राज्य बजट को “घर में नहीं दाने और अम्मा चली भुनाने” की माफिक राहत की बिना ठोस कार्य योजना के खालिस मिशनों की घोषणाओं के पिटारे की संज्ञा देते हुए निराशा जनक बताया। बेकारी और महंगाई से त्रस्त राहत की आस लगाये बैठे आमजन को निराशा हाथ लगी। इसी तरह सम्पूर्ण कर्जमाफी की बाट जोह रहे किसानों को भी बजट प्रस्तावों ने निराश किया। 3 साल बाद भी वादे को पूरा नहीं करना किसानों के साथ बड़ा धोखा है। ऊंट-बछड़ों की खरीद फरोख्त और राज्य से बाहर भेजने पर लगे प्रतिबंध को नहीं हटाने से पशुपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा रहा है। सरकार ने इसे नजरअंदाज किया और इसके समाधान की कोई बात नहीं की।

संविदा कर्मचारियों, आंगनबाड़ी, आशा कार्यकर्ताओं, मीड डे मील वर्कर्स और अन्य योजनाकर्मियों के मानदेय में मात्र 20% की बढ़ोतरी “ऊंट के मुंह में जीरे” समान है। सरकार उन्हें कर्मचारी का दर्जा देकर न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करे और संविदा कर्मचारियों को नियमित करे। मंत्री डीडी कल्ला की अध्यक्षता में बनी कमेटी की सिफारिशें धूल चाट रही हैं। स्कूल काॅलेज खोलने की घोषणाएं तो खूब हैं परन्तु पिछली वसुंधरा राजे सरकार के समय बंद की गई 3500 स्कूलों को खोलने के वादे पर इस बजट में भी चुप्पी साध रखी है। कालेजों में शिक्षकों के 60% पद खाली पड़े हैं जिनको भरे जाने की कोई बात इस बजट में नहीं की गई है। स्वास्थ्य सेवाओं संबधी घोषणाएँ निजी क्षेत्र को मजबूत करने वाली हैं जबकि कोरोना महामारी से सबक लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक मजबूत करने की जरूरत है।
राज्य में पेट्रोल – डीजल सबसे महंगा है और आमजन इसके बोझ से दबे जा रहे हैं बजट में इन पर वैट घटाने पर पूरी तरह चुप्पी साध ली गई है। इसी तरह बिजली दरों को सस्ती और तर्कसंगत बनाने की बजाय उलझावड़ा बनाकर पहले से भ्रष्टाचार की खदान बने बिजली विभाग चाक-चौबंद करने के बदले 2 रू की बिजली प्राइवेट से 20 रू में खरीदारी करने की लूट की गुंजाइश को बनाये रखा है। विधवाओं, वृद्धों और विकलांगों की पेंशन बढ़ाने की सुध नहीं ली गई है। इसमें कम से कम 500 रू की बढ़ोतरी अपेक्षित है और एकल महिलाओं को भी पेंशन सुविधा प्रदान की जाने की जरूरत है। मजदूरों के प्रति संवेदनशीलता का दिखावा करने वाली सरकार पिछली भाजपा सरकार के समय किये गये मजदूर विरोधी बदलावों को बहाल करने की बात को भूला ही दिया है। सरकार मजदूरों के हितों की रक्षार्थ उन्हें वापस ले कर उनके साथ न्याय करे।

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