बीकानेर,राज्यों की सरकारों के अंतिम दो बजट चुनावी रा प्रभाव से नहीं बच पाते। राज्य सरकार की अपना सेकंड लास्ट बजट पेश करने की तैयारी अंतिम चरण में है। प्रतिस्पर्द्धा का जमाना है, ऐसे में चुनावी माहौल समय से पहले थोड़ा जल्दी छाने लगा है। बजट को चुनावी प्रभाव से या यों कहें कि चुनावी हथियार बनने से रोकना जरूरी है। राज्य की कांग्रेस सरकार का ये आखिर बजट होगा, जो पूरे वित्तीय वर्ष के लिए होगा। इसके बाद अंतिम बजट चुनावी वर्ष में पेश होगा। यदि सत्तारूढ़ दल को जीत नहीं मिली, तो राजनीति के चलते अन्य पार्टी की बनने वाली सरकार उस बजट को क्या गम्भीरता से लेगी? सवाल का जवाब सभी जानते हैं। वैसे भी सरकार के कार्यकाल के अंतिम बजट को शक से देखा जाता है। सरकार का पूरा ध्यान 23 फरवरी को पेश होने वाले बजट के जरिए जनता को राहत देने पर है। इस दिन प्रदेश में पहली बार कृषि बजट अलग से पेश होगा।
गम्भीर तथ्य है कि मार्च 2014 में जो कर्जभार 1 लाख 29 हजार 910 करोड़ रुपए था, वह सितम्बर 2021 के अंत में 4 लाख 34 हजार 712 करोड़ रुपए को पार कर गया। ये आंकड़े प्रदेश के आर्थिक स्वास्थ्य को बता रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हों या पूववर्ती मुख्यमंत्री, हर बजट में प्रदेश के आर्थिक हालात पर चिंता जताते रहे हैं, लेकिन ठोस उपाय नजर नहीं आएं। कर्ज और देनदारियों का भार बढ़ता जा रहा है। इसे कम करना बहुत जरूरी है। नहीं तो आर्थिक स्थिति संभाले नहीं संभलेगी। स्थिति यह है कि 2019 की शुरुआत में कर्ज और देनदारियां 3 लाख 9 हजार 385 करोड़ रुपए थीं, वहीं सितम्बर 2021 में ये 4 लाख 34 हजार 712 करोड़ रुपए हो गईं।
बजट से जनता को सकारात्मक रूप से प्रभावित करना हर राज्य सरकार की प्राथमिकता होती है, लेकिन अर्थव्यवस्था को मजबूत करने वाले दूरदर्शी उपाय किए जाने की जरूरत है। प्रदेश के आर्थिक स्वास्थ्य की शर्त पर लोक लुभावनी घोषणा पर आधारित बजट की नींव भविष्य के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती। इसके लिए कुछ सख्त कदम उठाने होंगे। बीमारी को समूल नष्ट करने के लिए कड़वी दवा लेनी पड़ती है। राज्य सरकार और जनता, दोनों को इस सच्चाई को समझना जरूरी है। कमाई से ज्यादा वेतन, ब्याज व अनुदान पर खर्च हो रहा है। घी पीने के लिए कर्ज लेकर धन जुटाना कतई समझदारी नहीं कहलाती।