बीकानेर,प्रदेश की दूसरी राजभाषा राजस्थानी बने इसकी मांग लंबे समय से हो रही है, साथ ही वर्ष 1980 से राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा इस बाबत विधिक प्रावधानों के अनुसार मांग करने का सिलसिला आज भी निरन्तर जारी है। इसी संदर्भ में आज दोपहर प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा विश्व मातृभाषा दिवस के अवसर पर आयेाजित तीन दिवसीय समारोह के तहत तीसरे दिन राज्य स्तरीय ई परिसंवाद का आयोजन ‘दूसरी राजभाषा एवं विधिक प्रावधान’ विषयक का हुआ। जिसकी अध्यक्षता कवि कथाकार एवं वरिष्ठ कवि कथाकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदेालन के प्रवर्तक कमल रंगा ने की। कोटा की साहित्यकार (डॉ.) प्रो. अनिता वर्मा के मुख्य आतिथ्य एवं सोजत सिटी के वरिष्ठ बाल साहित्यकार एवं शायर अब्दुल समद राही के साथ एवं रावतसर हनुमानगढ़ के कवि गीतकार रूपसिंह राजपुरी का विशिष्ट आतिथ्य रहा।
परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए कमल रंगा ने कहा कि किसी भी प्रदेश की राजभाषा बनाने के लिए भारतीय संविधान में अध्याय 2 के तहत अनुच्छेद 345 से 347 में स्पष्ट व्यवस्था है, जैसे संविधान के अनुच्छेद 345 राज्य की राजभाषा या राजभाषाओं का स्पष्ट प्रावधान है। इसी क्रम में अनुच्छेद 346 और 347 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए किसी राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा उस राज्य के प्रयोग में होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अधिक भाषाओं को शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के प्ररूप में अंगीकार कर सकता है। इस बाबत भारत के अनेक राज्यों में एक ही नई राजभाषाएं शासकीय प्रयोग में आ रही है।
समारोह की मुख्य अतिथि कोटा की (डॉ.) प्रो. अनिता वर्मा ने कहा कि खास तौर से आजादी के बाद प्रदेश की दूसरी राजभाषा राजस्थानी न बनने के कारण अजीब स्थिति हो गई की आमजन एवं सरकारी कर्मचारी दोनों कार्यलयों एवं न्यायालयों में ऐसी भाषा से रूबरू होता जो उसकी सहज समझ से परे होती है। ऐसे में व्यक्ति एवं उसकी सही बात सही ढंग से संबंधित तक पहुंचने में निश्चय कठिनाई होती जो गलत है। तभी तो राजस्थानी प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनना सार्थक कदम होगा।
समारोह के विशिष्ट अतिथि सोजत के अब्दुल समद राही ने कहा कि इसी तरह यह भी विधिक प्रावधान है कि भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने वाली भाषा के संबंध में विशेष उपबंध यदि इस निमित मांग किए जाने पर महामहिम राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाए कि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता है कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राज्य द्वारा मान्यता दी जाए तो वे निर्देश जारी कर सकते हैं जो शासकीय मान्यता प्राप्त कर सकती है।
समारोह के दूसरे विशिष्ट अतिथि रावतसर हनुमानगढ़ के रूपसिंह राजपुरी ने कहा कि भाषा किसी देश-प्रदेश का इतिहास भी है और भूगोल भी उसके साथ विकास का सशक्त माध्यम भी है। भाषा हमारे प्रदेश की परम्पराओं एव संस्कारों की संवाहक है साथ ही सभ्यता की रक्षा के लिए भी राज भाषा का होना जरूरी है। भाषा की रक्षा करना हमारी पहचान एवं स्वतंत्रता के हित में है। ऐसी स्थिति में राजस्थानी प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनने का सही और वाजब हक रखती है।
ई परिसंवाद में भाग लेते हुए राजसंमद के साहित्यकार किशन कबीरा ने कहा कि आज सब हम भारतीय संदर्भ में राजभाषाआंे की बात करें। तो हमें ज्ञात होता है कि जब छत्तीसगढ़ राज्य में छत्तीसगढ़ी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं है फिर भी वहां की राज्य सरकार ने उसे दूसरी राजभाषा घोषित कर दिया। ऐसी स्थिति में राजस्थान में राजस्थानी को दूसरी राजभाषा घोषित नहीं करना दुःखद पहलू है।
इसी क्रम में ई परिसंवाद का संचालन करते हुए युवा शायर कासिम बीकानेरी ने कहा कि विधिक प्रावधानों के होते हुए एवं लंबे समय से प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनाने की मांग पर राज्य सरकार शीघ्र ध्यान देकर निर्णय करना चाहिए, क्योंकि यह करोड़ों लोगों का हक है एवं उनकी पहचान से जुड़ा हुआ सवाल है। इसके लिए वर्षो से अहिंसात्मक आंदोलन चल रहा है। जो अपने आप में महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में राजस्थानी भाषा जो हमारी अस्मिता है उसके साथ खिलवाड़ न किया जाए और जन भावना के कदर की जाए।
इतिहासविद् डॉ फारूक चौहान ने कहा कि प्रदेश की राजभाषाओं के बाबत अनेक ऐसे उदाहरण है। जहां एक नहीं दो नहीं कई प्रादेशिक राजभाषा है। जैसे झारखंड, उत्तरप्रदेश आदि राज्य अतः राजस्थानी को राजस्थान में स्पष्ट विधिक प्रावधन के अनुरूप राज्य सरकार द्वारा उचित कार्यवाही कर तुरंत दूसरी राजभाषा बनानी चाहिए।
अपनी बात रखते हुए कवि गिरीराज पारीक ने कहा कि कोई भी राजभाषा रोटी रोजी से जुड़ा मामला है। ऐसी स्थिति में राजस्थान में राजस्थानी को दूसरी राजभाषा बनना ही चाहिए ताकि प्रदेश का युवा अपने हको को प्राप्त कर सके।
प्रारंभ में सभी का स्वागत प्रज्ञालय के युवा शिक्षाविद् राजेशरंगा ने करते हुए कहा कि राजस्थानी प्रदेश की राजभाषा शीघ्र बननी चाहिए एवं ई परिसंवाद का तकनीकी संचालन जोधपुर से कासिम बीकानेरी ने किया एवं सभी का आभार भवानी सिंह ने ज्ञापित किया।