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बीकानेर,भारत का आम आदमी आर्थिक समस्याओं के कारण मुश्किल में फंसा हुआ है। बेरोजगारी इसका मुख्य कारण है। निश्चित रूप से बेरोजगारी के आंकड़े हमें भयभीत करते हैं तथा यह भी स्पष्ट करते हैं कि बेरोजगारी किस तरह से हमारे देश के आर्थिक विकास को रोकती है। बेरोजगारी की समस्या को गौर से देखा जाए तो उसके पीछे के कारणों में मुख्य कारण कृषि क्षेत्र का उपलब्ध नहीं है। आधुनिकीकरण न होना है। इसके परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था में अंशदान 50 प्रतिशत से गिरते हुए 15 से 20 प्रतिशत के बीच पर आ गया है। दूसरी तरफ औद्योगिक नीतियों में उत्पादन क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता नहीं दी गई है। इस कारण भी आबादी का एक बहुत बड़ा भाग रोजगार की सुविधाओं से वंचित है। जो सेवा क्षेत्र पिछले तीन दशकों से अर्थव्यवस्था की विकास को बागडोर संभाल रहा है

बैंकों की जमा ब्याज दरें बहुत कम हो गई हैं। इस वजह से आम आदमी को वित्तीय निवेश के लिए विश्वसनीय विकल्प भी नजर नहीं आ रहे है, वास्तविकता में उसका रोजगार वितरण में तुलनात्मक रूप से कम योगदान है। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि सेवा क्षेत्र के लिए रोजगार के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक मुख्य आवश्यकता है, जो ग्रामीण और छोटे शहरों में उपलब्ध नहीं है।

आय की तुलना में खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं। दिन-प्रतिदिन के गुजर-बसर की चीजें लगातार महंगी हुई हैं। पेट्रोल, डीजल तथा रसोई गैस के मूल्य तेजी से बढ़े हैं। मार्च 2021 में जहां रसोई गैस का मूल्य 819 रुपए था, वहीं अगस्त के महीने में 859 रहा तथा वर्तमान समय में यह 900 से अधिक हो चुका है।

अब आम आदमी को वित्तीय निवेश के विश्वसनीय और अच्छे विकल्प भी उपलब्धता नजर नहीं आ रहे। लोग पहले बैंक में निवेश को प्राथमिकता देते थे। अब स्थिति बदल रही है। बैंकिंग जमाओं पर ब्याज की दरों में लगातार गिरावट हो रही है। दूसरी तरफ स्टॉक मार्केट अपनी विश्वसनीयता को बरकसर न रखने के कारण आम आदमी के लिए निवेश का पसंदीदा स्थान अभी तक नहीं बन पाया है।

वस्तु की खरीद और किसी सेवा लेने पर कर का भी भुगतान किया जाता है। साथ ही आयकर भी वसूला जाता है। आयकर के एवज में व्यक्ति को कोई विशेष सुविधा नहीं मिल रही। हर तरह के कर देने के बावजूद अच्छी चिकित्सा व अच्छी शिक्षा की सुविधा बहुत महंगी है। असल में चिकित्सा सुविधा पर हमारे मुल्क में जीडीपी का 1 से 2 प्रतिशत ही खर्च हो रहा है। इसी कारण सरकारी अस्पतालों में मूलभूत सुविधाओं का स्तर बहुत निम्न है, दूसरी तरफ गुणवत्तापूर्ण

चिकित्सा निजी क्षेत्रों में अत्यंत महंगी है। इसी तरह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी बहुत महंगी है। उच्च शिक्षा तो इसका जीता जागता उदाहरण है। चाहे वह भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) हों या भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) हों। इनका स्वामित्व सरकार के पास है, फिर भी वे इतने महंगे हो चुके हैं कि एक आम आदमी अपने बच्चों को इन संस्थानों में दाखिले का विचार ही नहीं कर पाता।

देश का आर्थिक विकास तभी हो सकता है, जब आम जनता की आर्थिक समस्याओं का समाधान हो। केवल आंकड़ों की बाजीगरी से कुछ नहीं होने वाला। आम आदमी को राहत देनी होगी। रोजगार बढ़ाने के साथ महंगाई पर नियंत्रण जरूरी है। देश का आम आदमी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में विश्वास रखते आशा करता है कि आर्थिक समस्याओं के दुष्प्रभावों को सरकारें समझेंगी तथा उनके निराकरण के लिए ठोस कदम उठाएंगी।

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