बीकानेर,पिछले बजट सत्र में मुख्यमंत्री अशाेक गहलाेत ने बीकानेर की जिन दाे सड़काें काे फाेर लेन करने का एलान किया था। यूआईटी सीएम का वादा पूरा करने के लिए अब एशियन डवलपमेंट बैंक से लाेन लेने काे मजबूर हाे गई है क्याेंकि सरकार ने सीएम घाेषणा काे पूरा करने के लिए बजट नहीं दिया। करीब 15 कराेड़ देनदारियां भी यूआईटी पर बाकी हैं। जमीन बेचना यूआईटी का आय का बड़ा स्राेत है लेकिन भूखंड बिक नहीं रहे। दरअसल 2018 से लेकर 2021 तक की करीब 15 कराेड़ की देनदारियां यूआईटी पर हैं। ठेकेदार राेज भुगतान के लिए दबाव बन रहे हैं। इसके अलावा पूगल राेड़ और जयपुर राेड़ पर म्यूजियम सर्किल से लेकर हल्दीराम प्याऊ तक फाेर लेन सड़क भी बनानी है। इन दाेनाें सड़काें पर कम से कम 24 कराेड़ की लागत आएगी। यूआईटी के खाते में इस वक्त करीब आठ से 10 कराेड़ रुपए ही हैं। ऐसे में सिवाय लाेन लेने के दूसरा विकल्प नहीं बचा। जमीन बेचने के लिए यूआईटी नीलामी की सूचना जारी करती है लेकिन औसतन 100 भूखंड में से सात ही बिक रहे हैं। ऐसे में यूआईटी बुरे आर्थिक हालाताें से गुजर रही है। यही वजह है कि एकाउंट सेक्शन ने सभी से देनदारियाें का ब्याैरा मांगा है।
इसलिए शहर की टूटी सड़काें का पैचर्वक भी कम
इस साल यूआईटी ने पैचवर्क के लिए पाैने तीन कराेड़ रुपए बजट की मांग की थी। बदले में सिर्फ सवा कराेड़ रुपए ही मिले। इसलिए करीब डेढ़ साै किलाेमीटर टूटी सड़काें का पैचर्वक हाथ में लिया गया। एक महीने तक करीब 45 प्रतिशत पैचर्वक का काम पूरा हाे गया। शेष पैचर्वक का काम मंगलवार से वापस शुरू हाेगा। माना जा रहा है कि 15 दिन में शेष पैचवर्क का काम पूरा हाेगा।
रुटीन काम हम अपनी आय से पूरी रहे हैं। देनदारियां भी काफी हद तक चुका रहे हैं। ये एक रुटीन प्रक्रिया है लेकिन दाे हाई-वे और दाे आरयूबी का वित्तीय भार ज्यादा है। इसलिए हम एडीबी से लाेन के लिए एप्लाई कर रहे हैं। लाेन लेना काेई गुनाह नहीं। कई संस्थाएं लेती हैं। जब हमारे पास भूखंड बिकेंगे ताे हम उसे चुका देंगे। – नरेन्द्र सिंह राजपुराेहित, सचिव यूआईटी
जाेड़बीड़ और मुरलीधर व्यास काॅलाेनी क्षेत्र में यूआईटी के डीएलसी रेट प्राइवेट प्राेपर्टी वालाें से ज्यादा है। लाेग इसीलिए यूआईटी की बजाय प्राइवेट जमीन बिजनेस करने वालाें से खरीदारी कर रहे हैं। लाेकेशन के लिहाज से अलग-अलग भूखंड की अलग डीएलसी रेट है लेकिन प्राइवेट जमीन कराेबारी यूआईटी से सस्ती दराें में जमीन दे रहे हैं। यही हाल जाेड़बीड़ इलाके में हैं। यूआईटी की सबसे लाेकप्रिय काॅलाेनी जाेड़बीड़ बनाने का था लेकिन समय पर लाेगाें काे भूखंड नहीं मिले इसलिए इस याेजना से विश्वास भी कम हाे गया। यही वजह है कि सीधे यूआईटी की नीलामी में बीते एक साल से सात प्रतिशत ही भूखंडाें की बिक्री हाे रही है। यूआईटी विकास के मामले में खुद की किसी काॅलाेनी काे माॅडल नहीं बना पाई इसलिए लाेग आकर्षित भी नहीं हाे रहे।
यूआईटी पर दाे हाई-वे के अलावा अंबेडकर सर्किल आरयूबी बनाने का भी वित्तीय भार है। उसका काम शुरू हाे चुका है। सांखला फाटक आरयूबी की भी डीपीआर लगभग तैयार है। अगर वाे मंजूर हुआ ताे उसका भी खर्चा यूआईटी काे वहन करना हाेगा। ऐसे में दाे हाई-वे के अलावा इन दाे आरयूबी काे भी पूरा कराना है। जानकार कहते हैं कि अगर सरकार ने बजट घाेषणा में दाे हाई-वे चाैड़ा करने का वादा किया ताे स्टेट से ही वित्तीय व्यवस्था हाेनी चाहिए थी जाे नहीं हुई। इसलिए यूआईटी पर भार आ गया।