बीकानेर, जुबली नागरी भंडार बीकानेर का एक ऐसा पावन स्थल है जहां पर प्रतिदिन रचनात्मक और सृजनात्मक कार्य होता है | बीकानेर के साहित्यिक माहौल को परवान चढ़ाने में नागरी भंडार की अहम भूमिका रही है |’ यह उद्गार व्यक्त किए वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा ने अवसर था नागरी भंडार पाठक मंच और फन वर्ल्ड वाटर पार्क नाल की तरफ से नागरी भंडार के ऐतिहासिक पावन स्थल में स्थित महारानी सुदर्शन आर्ट गैलरी में हुए त्रिभाषा कवि सम्मेलन एवं मुशायरा का | उन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यह उद्गार पेश किए | कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में जहां एक तरफ रचनाओं की बसंती बयार बही, वहीं दूसरी ओर समसामयिक विषयों पर भी कवियों ने अपनी रचनाएं पेश करके कवि सम्मेलन व मुशायरे को सफल बनाया |
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि फन वर्ल्ड वाटर पार्क नाल के संचालक कवि नेमचन्द गहलोत ने कहा कि साहित्यकार सर्वहित की बात करता है और सब को जोड़ने का काम करता है और यही काम ये हमारी दोनों संस्थाएं कर रही है |
. पाठक मंच के शायर क़ासिम बीकानेरी ने बताया कि कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में दो दर्जन से अधिक रचनाकारों ने अपनी एक से बढ़कर एक रचनाएं प्रस्तुत करके श्रोताओं को भरपूर आनंदित किया |
कार्यक्रम के अध्यक्ष कवि कमल रंगा ने अपनी रचना से बसंत का सौंदर्य यू सामने ही रखा-‘सांस री सौरम है बसंत/ उमंग तरंग है बसंत/ रितु राज है बसंत/धरा रो ताज है बसंत/ शिशिर रे बाद आवै बसंत पतझड़ बाद आवै बसंत |’
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कवि नेमचंद गहलोत ने अपनी रचनाओं से सार्थक संदेश दिया-‘हंस-हंसकर बतलाओ सबनै /क्यों राखो हो बैर | साथ ही आपने ‘बेटी तू बड़भागिनी तनै जबर घड़ी भगवान’ रचना से बेटियों की प्रति अपनी भाव की सशक्त प्रस्तुति दी | कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवियत्री प्रमिला गंगल ने-‘आओ ऋतुराज प्रकृति का मानूं मैं आभार’ रचना के माध्यम से बसंत के आगमन की सुंदर अभिव्यक्ति प्रस्तुत की | विशिष्ट अतिथि शायर बुनियाद ज़हीन ने अपनी ताज़ा ग़ज़ल के इस शे’र से श्रोताओं से भरपूर दाद लूटी-‘भरोसा है तो वा’दा क्यों करें हम/ ये बेमतलब का धोखा क्यों करें हम |’
कार्यक्रम में शायर क़ासिम बीकानेरी ने बसंत पर लिखा अपना नया गीत-‘पीले पीले गुल खिले कलियां सभी मुस्का गई/बाग में लो आज फिर से रुत बसंती छा गई’ के माध्यम से बसंत के ख़ूबसूरत मंज़र सामने रखें | कार्यक्रम में मौलाना अब्दुल वाहिद अशरफी ने-‘कलियों पर रंगोनूर है गुल पे निखार है/ ख़ुशियां मनाओ आमद फसले बहार है’ इंदिरा व्यास ने धरती टचके मिनख रा चाखा भावपूर्ण रचना से सभी की आंखें नम कर दी | शायर ज़ाकिर अदीब ने हो नवीद आज आ गया है बसंत/ अपने हर दर्द की दवा है बसंत, विप्लव व्यास ने थारो इण तरिया आवणो म्हारे मांय रळ जावणो कईं बेमाता रो खेल हो कईं | वरिष्ठ कवि प्रमोद कुमार शर्मा ने यारों मित्रों की कुछ खबर रखा करो, गंगा विशन विश्नोई ने रक्त की रंगत कविता की इन पंक्तियों समझ वक्त की रंगत को के जरिए उम्दा प्रस्तुति दी | शायर डॉ़ ज़ियाउल हसन क़ादरी ने क्यों न हो एे’तबार फूलों का/ दिल पर है इख्तियार फूलों का, गौरी शंकर प्रजापत ने बरसे न ए सावणी म्हारे घर की छत टूटोड़ी है,मनीषा आर्य सोनी ने धरती फौडियो पसवाड़़ो अर ओढ़ण चाली कसूमल रंग, जुगल किशोर पुरोहित ने हे मात तुम्हारे चरणों में दुनिया की सारी जन्नत है, सागर सिद्दीक़ी ने ज़ख़्म मुझे कोई नया क्यों नहीं देते, हनुमंत गौड़ नजीर ने तुमने हर जगह पर क्यों आना जाना छोड़ दिया है, किशननाथ खरपतवार ने मनाले अपने साजन नै बसंती बार बाजे है, मदन जैरी ने बसंत की आई बहार है कैलाश टाक ने हल्का हो जाए जरा दिल का बोझ, बाबूलाल छंगाणी ने चार भाया री बेन लाडेसर, गिरिराज पारीक ने आओ मिलकर दीप जलाएं रचना के माध्यम से श्रोताओं को उमंगों के दीप जलाने का संदेश दिया | कार्यक्रम में लक्ष्मी नारायण आचार्य एवं श्री हरिकृष्ण व्यास सहित अनेक रचनाकारों ने अपनी बेहतरीन रचनाएं प्रस्तुत की |
कार्यक्रम के आरंभ में स्वागत भाषण संस्कृति कर्मी डॉ. फारुक चौहान ने प्रस्तुत किया | कार्यक्रम में नन्द किशोर सोलंकी, आत्माराम भाटी, रंगनेत्री मीनू गौड़, श्री गोपाल स्वर्णकार, संतोष शर्मा, ललित कुमार, छगनलाल एवं गोपाल गौतम सहित अनेक श्रोताओं ने कविताओं का लुत्फ उठाया | कार्यक्रम का सरस संचालन क़ासिम बीकानेरी ने किया |