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बीकानेर,गीतकार आनंद बक्षी का बीकानेर से कोई सीधा जुड़ाव नजर नहीं आया इसके बावजूद न जाने कैसे 1968 में उन्होंने फिल्म राजा और रंक का गीत लिखा -मेरा नाम है चमेली मैं हूं मालन अलबेली, चली आई हूं अकेली बीकानेर से…- लता मंगेशकर ने इसे गाया और गाना सुपरहिट हो गया। सीधे तौर पर बीकानेर और लता का रिश्ता भले ही इतना दिखता हो लेकिन वास्तविकता यह है कि बीकानेर के गीतकाराें-संगीतकाराें से उनका कामकाज का ही नहीं वरन दुखदर्द साझा करने का भी रिश्ता रहा है। इनमें गीतकार पंडित भरत व्यास और संगीतकार गुलाम मोहम्मद जैसे नाम शामिल हैं।

घायल की गति घायल जाने की तर्ज पर बात करें तो पंडित व्यास के माता-पिता बचपन में गुजर गए। तीन भाई मुंबई-पुणे जा पहुंचे। लता के भी पिता चल बसे। परिवार की जिम्मेदारी आ गई। मतलब यह कि बचपन के खेल, लोरी सब छूट गए। माना जाता है कि प्यार की कमी से भाई का बचपन बिलख उठा होगा और भाई भरत व्यास के भीतर एक मां जाग उठी। लिखा-मैं गाऊं तू चुप हो जा, मैं जागूं रे तू सोजा..। इसी दर्द को झेल चुकी लता के कंठों ने शब्दों को छुआ और यह घर-घर की लोरी हो गया।

लता मंगेशकर के सुपरहिट गीतों में शामिल -जरा सामने तो आओ छलिये, छुप-छुप छलने में क्या राज है-भी पंडित व्यास ने घर छोड़कर गए बेटे के वियोग में लिखा था। दिल का खिलौना हाय टूट गया..ज्योत से ज्योत जगाते चलो..बादलों बरसो नयन की कोर से… जैसे बीसियों जन-जन के दिल को छूने वाले गीत हैं जिनमें व्यास के शब्द और लता के सुर मिले हैं। यतीन्द्र मोहन मिश्र की -लता सुर गाथा- में खुद लता ने इंटरव्यू में कहा, भरतजी में गुण था कि वे गीत लिखने के साथ ही तर्ज बांध देते थे। बीकानेर ने सिर्फ शब्द ही नहीं दिए वरन संगीत भी दिया। सबसे बड़ा उदाहरण है पाकीजा जिसके संगीतकार थे बीकानेर के गुलाम मोहम्मद। यूं ही कोई मिल गया था…इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा…ठाडै रहियो ओ…मौसम है आशिकाना…जैसे सुपरहिट गीत इसी संगत से बने।

आज जब स्वर सम्राज्ञी दुनिया काे अलविदा कह गई है ताे लगता है व्यास ने एकबार फिर लाेरी की तान छेड़ दी है.. धरती की काया सोई, अंबर की माया सोई झिलमिल तारों के नीचे, सपनों की छाया सोई मैं ढूंढूं रे तू खो जा, मैं जागूं रे तू सोजा.. और धरती से विदा हुई सुरों की आत्मा के गमन को गुलाम मोहम्मद का तबला गति दे रहा है : चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो…लगता है बादलों के उस पार शब्द, सुर और ताल की महफिल सजेगी।

सहजता…यूं ही कोई मिल सकता था
बीकानेर के डॉ.राकेश रावत कहते हैं, मैं परिवार के साथ मुंबई में था। एक रेस्टोरेंट में खाना खाने गए। दूसरी टेबल पर बैठे एक परिवार पर बार-बार नजर जा रही थी क्योंकि वहां बैठी महिला लता मंगेशकर की तरह दिखती थी। रहा नहीं गया। पूछा तो पता चला, लताजी ही है। हिम्मत कर पास गए। बताया कि मैं ईएनटी डॉक्टर हूं। बीकानेर से आया हूं तो मजाकिया लहजे में बोली- ईएनटी वाले गले के डॉक्टर होते हैं। हम गाने वालों का इनसे बहुत करीब का रिश्ता होता है।

विनम्रता…केसरिया बालम गाने से पहले जिलाई बाई से पूछा
बीकानेर के संगीतकार गुलाम मोहम्मद के साथ घंटो बतियाते हुए लता मंगेशकर को मांड राग और इसमें रचे गए केसरिया बालम..की जानकारी मिली। वे अल्लाह जिलाई बाई से मुंबई में मिली। बकौल डॉ.अजीज सुलेमानी, ‘लेकिन’ में जब केसरिया बालम गाया तो उससे पहले अल्लाह जिलाई बाई से इसकी बारीकियां पूछीं। इजाजत ली। यह थी उस महान गायिका की विनम्रता।

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