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बीकानेर वाले हर की धरती पर कला के श धनी एक से बढ़कर एक मिल जाएंगे। विभिन्न प्रकार की राजस्थानी पगड़ी बाधने में महारत हासिल करने वाले युवक, युवतियां और बुजुर्ग अपनी कला का परिचय देते रहते हैं। राजस्थानी वेश भूषा और तुर्रा-कलंगी और नगाड़ा प्लेयर के रूप में पहचान कायम करने. वालों में नामचीन हैं गोपाल बिस्सा। वे साफा-पगड़ी बांधने के लिए विदेशों की यात्रा कर चुके हैं। उन्हें उत्सव के अनुरूप साफा बांधने में महारत हासिल है। बिस्सा ने बीकानेर की कला, संस्कार और संस्कृति में गहराई से पैठ रखने के बलबूते देश- दुनिया में राजस्थानी कला का डंका बजाया है। पिता किशन बिस्सा उर्फ बुद्धड़ महाराज कला प्रवृति के थे। • पिता से गोपाल बिस्सा ने चंग-धमाल नगाड़ावादन, तुर्राकलंगी गायन आदि को सीखना शुरू किया। राजस्थानी वेश-भूषा धारण करने पर संस्कृति प्रदर्शन के आइकन नजर आने पर रेलवे स्टेशन पर बिस्सा की फोटो भी बनवाई गई है।

नई पीढ़ी के कलाकार

बीकानेर के कई ज्योतिषियों, साहित्यकारों, रंगकर्मियों, संगीतकारों और लेखकों ने देश दुनिया में पहचान कायम की है। नई पीढ़ी के कलाकारों में गोपाल बिस्सा जाना-पहचाना नाम है। पौराणिक कला जैसे राजस्थानी गायन-वादन, चंग-धमाल में नवाचार करते रहते हैं। इन दिनों शादियों का सीजन है। ऐसे में बिस्सा को शादी वाले परिवार के सदस्य साफा-पगड़ी बांधने के लिए विशेष रूप से बुला रहे हैं।

विदेशों में किया कला का प्रदर्शन

बिस्सा के अनुसार शादी-विवाह के साथ अन्य जैसा उत्सव होता है, उसके अनुरूप राजस्थानी साफा या पगड़ी को बांधते हैं। इस कला के प्रदर्शन के लिए बीकानेर और प्रदेश से बाहर भी गए। उन्होंने विदेशों में दुबई, मस्कट और ओमान में जाकर पगड़ी बांधने की कला का प्रदर्शन किया है। मारवाड़ी संस्कार और कला को आयाम देने के चलते मरु महोत्सव के नायाब कलाकार के रूप में पहचान मिली। साथ ही कई मंचों पर कला का प्रदर्शन करने पर पुरस्कृते किए गए हैं।

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