तेरापंथ धर्मसंघ के 158वें वृहद् मर्यादा महोत्सव का भव्य शुभारम्भ,
जयपुर/बीदासर ( ओम दैया )। बीदासर नगर स्थित समाधिकेन्द्र परिसर में शनिवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तेरापंथ धर्मसंघ के 158वें मर्यादा महोत्सव के त्रिदिवसीय आयोजन का आध्यात्मिकता से ओतप्रोत नव्य-भव्य शुभारम्भ हुआ। इस समायोजन के साथ ही बीदासर की धरती तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में 25वीं बार धर्मसंघ के महामहोत्सव के रूप में स्थापित मर्यादा महोत्सव के समायोजन की स्थली का गौरव प्राप्त कर मानों पुलकित हो उठी। संपूर्ण बीदासरवासी ऐसे परम सौभाग्य को प्राप्त कर कृतार्थता की अनुभूति कर रहे थे।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ त्रिदिवसीय वृहद् मर्यादा महोत्सव का शुभारम्भ हुआ। आचार्यश्री ने तेरापंथ के प्रथम आचार्य भिक्षु द्वारा लिखित मर्यादा पत्र को स्थापित कर मर्यादा के महाकुम्भ का मंगल आगाज किया। मुनि दिनेशकुमारजी ने मर्यादा घोष का समुच्चारण करते हुए मर्यादा गीत का संगान किया। उपासक-उपासिकाओं द्वारा ‘गुरुदेव हमें अच्छे संस्कार चाहिए’ गीत का संगान किया। मुख्यनियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने सेवा के महत्त्व पर प्रकाश डाला। साध्वी जिनप्रभाजी ने साध्वी समुदाय की ओर से तथा मुनि कुमारश्रमणजी ने साधु समुदाय की ओर से आचार्यश्री के समक्ष सेवा में नियुक्त किए जाने की अर्ज की।
मर्यादा के महाकुम्भ मर्यादा महोत्सव का प्रथम दिन जो सेवा की प्रधानता के लिए ख्यात है। इसलिए आचार्यश्री ने अपनी मंगलवाणी से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा, संयम और तप को धर्म कहा गया है। हम सभी जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के सदस्य हैं। इस धर्मसंघ के वार्षिक महोत्सव का आज शुभारम्भ हुआ है। दुनिया में अनेकानेक उत्सव आदि मनाए जाते हैं, किन्तु मर्यादा का महामहोत्सव तो शायद ही कहीं मनाया जाता होगा। तेरापंथ धर्मसंघ में मर्यादा के महोत्सव के साथ सेवा की बात भी जुड़ी हुई है। किसी भी संघ अथवा संगठन में सेवा व सहयोग की अपेक्षा होती है। जहां लोग समुदाय अथवा संघ रूप में होते हैं, वहां सेवा की आवश्यकता भी होती है। हमारे धर्मसंघ में सेवा के प्रति काफी रुझान देखने को मिलता है। जिसे देख आत्मतोष होता है। सेवा की भावना संघ के लिए मंगलकारी होती है। हालांकि सेवा विभिन्न संदर्भों में होती है। किसी को ज्ञान देना, सार-संभाल करना आदि भी सेवा का कार्य है। अक्षम साधु-साध्वियों की अग्लान भाव से सेवा करना, सेवा सापेक्ष को सेवा मिलना आवश्यक भी है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि सेवाकेन्द्र में बैठकर सेवा की बात करने का विरल प्रसंग है। सेवाकेन्द्र तो मानों अपने आप में तीर्थ होते हैं। कितने-कितने वयोवृद्ध चारित्रात्माएं वर्षों तक वहां विराजते हैं। आचार्यश्री ने सेवा के महत्त्व व्याख्यायित करते हुए लाडनूं सेवाकेन्द्र के लिए साध्वी प्रबलयशाजी, बीदासर समाधिकेन्द्र के लिए साध्वी सुदर्शनाश्रीजी, श्रीडूंगरगढ़ सेवाकेन्द्र के लिए साध्वी चरितार्थप्रभाजी, गंगाशहर सेवाकेन्द्र के लिए साध्वी कीर्तिलताजी, हिसार उपसेवाकेन्द्र के लिए साध्वी लब्धिश्रीजी तथा छापर सेवाकेन्द्र के लिए मुनि पृथ्वीराजजी व जैन विश्व भारती सेवाकेन्द्र के लिए मुनि विजयकुमारजी के सिंघाड़े को सेवा प्रदान की घोषणा की।
आचार्यश्री ने तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी की सक्रियता और तेरापंथ धर्मसंघ की सेवा से प्रेरणा लेने को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि साध्वीप्रमुखाजी की सक्रियता बनी रहे, आप स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर धर्मसंघ को और सेवाएं प्रदान करती रहें।
बर्हिविहार से पूज्य सन्निधि में पहुंची शासन गौरव साध्वी राजीमतिजी ने पूज्यप्रवर के दर्शन कर अपनी हर्षाभिव्यक्ति देने के साथ ही स्वयं द्वारा निर्मित पात्री आदि वस्तु पूज्यचरणों में अर्पित कीं तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीष प्रदान कर उनके भेंट को स्वीकार किया। इस दौरान आचार्यश्री ने साध्वी कनकश्रीजी (लाडनूं) को शासन गौरव का अलंकरण प्रदान किया। बीदासर से संबंधित मुनि नमिकुमारजी ने आचार्यश्री से 32 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तत्पश्चात जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित जय तिथि पत्रक मूलचंद नाहर आदि, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष सुरेशचन्द गोयल आदि पदाधिकारियों द्वारा शिशु संस्कार बोध भाग-2, जैन भारती के विशेषांक आदि को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ मर्यादा महोत्सव के प्रथम दिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ।