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जयपुर. भारत की संस्कृति में वाद, विवाद और संवाद की परम्परा रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहली शर्त जवाबदेही है। जवाबदेही सवालों से तय होती है। इसलिए सवाल को लोकतंत्र की आत्मा कहा जाता है। जितना सुनना-सुनाना होगा, लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा। जनता सवाल उठाने के लिए जिनको जिताकर विधानसभा भेजती है, जब वे ही सवाल उठाना छोड़ दें तो फिर इस लोकतंत्र में सवाल करने की उम्मीद किससे की जा सकी है। राजस्थान विधानसभा के आंकड़े बताते हैं कि लोकतंत्र के मंदिर में ही विधायक सवाल पूछने से मुंह मोड़ लेते हैं।

लोकसभा-विधानसभाओं में प्रश्न पूछने का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि सदन की कार्यवाही शुरू ही प्रश्नकाल से होती है।

राजस्थान की पन्द्रहवीं विधानसभा के । तीन साल में छह सत्र हो चुके हैं, लेकिन पांच प्रतिशत विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने सरकार बनने के बाद दिसम्बर 2018 से लेकर 31 जनवरी, 2022 तक एक भी सवाल पूछने की जरूरत महसूस नहीं की। ऐसा नहीं है कि ये विधायक जिन्होंने सवाल नहीं लगाए हों। वे पहली बार सदन में पहुंचे है। वरिष्ठ विधायक और जिनको प्रदेश की राजनीति में बड़े नेता समझा जाता है। वे भी प्रश्न नहीं लगा रहे हैं। राजस्थान विधानसभा की वेबसाइट के अनुसार 11 विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने एक भी प्रश्न नहीं पूछा है। प्रश्नों से नेताओं की दूरी हर बार

प्रदेश में विधानसभा सत्र में बड़े नेताओं की प्रश्नकाल से बेरूखी अक्सर देखने को मिलती है। प्रदेश में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है और भाजपा के बड़े नेता प्रश्न नहीं पूछ रहे, लेकिन पिछली बार जब भाजपा की सरकार थी, तब कांग्रेस के बड़े नेता भी प्रश्न पूछने से दूर ही रहे।

इनको नहीं होता प्रश्न पूछने का हक विधानसभा में प्रश्नकाल में प्रश्न सिर्फ वही पूछ सकता है, जो सिर्फ विधायक हो। मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, केबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री, सरकारी मुख्य सचेतक, उप मुख्य सचेतक प्रश्न नहीं पूछ सकते।

हेमाराम अपनी पीड़ा तो बताते रहे, लेकिन प्रश्नों से दूर रहे

कांग्रेस विधायक हेमाराम चौधरी मंत्रिमंडल विस्तार में मंत्री तो बन गए, लेकिन उन्होंने भी विधायक रहते तीन सालों में सिर्फ एक ही सत्र में प्रश्न पूछे। कांग्रेस सरकार बनने के बाद जो पहला सत्र था, उसमें तो प्रश्न पूछे गए, लेकिन इसके बाद के पांच सत्र में प्रश्न पूछने के मामले में हेमाराम चौधरी प्रश्न पूछने से दूर रहे। हेमाराम चौधरी काम नहीं होने के आरोप लगाकर विधायक पद से इस्तीफा तक दे चुके थे। लेकिन जब प्रश्न पूछने का मामला आया तो उनकी बेरुखी ही दिखी।

राजे-सचिन ने नहीं पूछा प्रश्न

सवाल नहीं पूछने वालों में बड़े- बड़े दिग्गजों के नाम शामिल हैं। प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और झालावाड़ विधायक वसुंधरा राजे, पूर्व डिप्टी सीएम एवं टोंक विधायक सचिन पायलट जैसे नाम भी उस सूची में शामिल हैं, जो प्रश्न नहीं पूछ रहे। टोंक से विधायक बने सचिन पायलट को कांग्रेस की सरकार बनने के बाद उप मुख्यमंत्री बनाया गया था। उप मुख्यमंत्री की हैसियत से वे प्रश्नों का जवाब देने के जिम्मेदार थे ना कि प्रश्न पूछने के, लेकिन उनको डिप्टी सीएम पद से हटे लम्बा समय हो गया। इसके बाद विधानसभा के तीन सत्र भी निकल चुके हैं, लेकिन उन्होंने विधायक की हैसियत से एक भी प्रश्न नहीं पूछा।

इन विधायकों ने भी नहीं पूछे प्रश्न…

विधायक सुदर्शन रावत, मनोज कुमार, महादेव सिंह खंडेला, राजेन्द्र विधुड़ी, परसराम मोरदिया, नरेन्द्र कुमार, दीपचंद, जितेन्द्र सिंह, गायत्री त्रिवेदी ने भी एक भी प्रश्न नहीं पूछा। प्रश्न नहीं पूछने वालों में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनो के ही नाम शामिल हैं।

 

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