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जयपुर.भारत में राजशाही समाप्त होने के बावजूद नाम के साथ राजा संबोधन जोड़े जाने पर हाईकोर्ट ने सवाल उठाया है। कोर्ट ने केन्द्र सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल राजदीपक रस्तोगी व राज्य के महाधिवक्ता एम.एस. सिंघवी को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या कोई व्यक्ति अपने नाम के साथ अब भी महाराजा, राजा, राजकुमार की पदवी का इस्तेमाल कर सकते हैं। न्यायाधीश समीर जैन ने तत्कालीन भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह के बेटों के बीच संपत्ति विवाद से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल किया। दरअसल, हाईकोर्ट में मान सिंह के बेटे भगवती सिंह की ओर से याचिका दायर की गई है, जिसमें पक्षकार लक्ष्मण सिंह के नाम के पहले राजा जुड़ा हुआ है। इसी पर हाईकोर्ट ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल व राज्य के महाधिवक्ता से पूछा है कि क्या 26वें संविधान संशोधन के तहत अनुच्छेद 363-ए जोडने के बाद भी कोई राजा महाराजा या राजकुमार जैसा संबोधन नाम के साथ जोड़ सकता हैं। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि अधीनस्थ अदालत में टाइटल में राजा शब्द का इस्तेमाल किया है, इसी कारण याचिका में इसका इस्तेमाल किया है। क्या राजा-महाराजा का इस्तेमाल हो सकता है? कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद अनुच्छेद 363-ए 363-ए का उल्लेख कर इसके तहत महाराजा, राजा, राजकुमार आदि पदवी हटाए जाने और उनको प्रिविपर्स दिए जाने पर पाबंदी लगाने का हवाला दिया है। साथ ही, कहा कि क्या संविधान के इस प्रावधान के बावजूद राजा, नवाब, महाराजा या राजकुमार पदवी का इस्तेमाल कर किसी संवैधानिक न्यायालय या ट्रायल कोर्ट में वाद दायर किया जा सकता है?

अंतरिम आदेश जारी रहेगा ने कोर्ट ने इस मामले में 3 फरवरी तक सुनवाई टालते हुए कहा कि प्रकरण में कोई अंतरिम आदेश है तो वह जारी रहेगा।

अनुच्छेद 363-ए कहता है…इसके तहत देश की रियासतों के प्रतिनिधियों की शासकों के रूप में पहचान व पदवी समाप्त कर दी। इसके अलावा रियासतों के प्रतिनिधियों की अगली पीढ़ी को राजभत्ता बंद करने का प्रावधान भी किया गया। अनुच्छेद 14 का हवाला देकर कोर्ट ने कहा- अनुच्छेद 14 का हवाला देकर कोर्ट ने कहा कि संविधान में सभी को समानता का अधिकार दिया गया है।

विवाद इसलिए हाईकोर्ट पहुंचा

भगवती सिंह की ओर से हाईकोर्ट में दायर याचिका में मानसिंह परिवार की जयपुर स्थित बरवाड़ा हाउस की संपत्ति के संबंध में साक्ष्य में कुछ दस्तावेज रेकॉर्ड पर लेने के अधीनस्थ अदालत के आदेश को चुनौती दी है। जयपुर की अधीनस्थ अदालत में करीब दस साल से बरवाड़ा हाउस के बंटवारे को लेकर विवाद विचाराधीन है। मामला, इसी प्रकरण से संबंधित है।

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