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बीकानेर,माहौल चाहे जैसा भी क्यों न हो, चुनाव जरूरी है, शायद ऐसी नियति लोकतांत्रिक व्यवस्था में बन चुकी है। तेज बारिश की तरह कोरोना का सामने आना आरंभ हो चुका है, इसके बावजूद किसी को कोई परवाह नहीं? पर चुनाव जरूरी है? चुनाव शायद अब इंसानी जीवन से बढ़कर हो गए हैं। । सात महीने पहले जब उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहे थे, तब दूसरी लहर कहर बरपा रही थी, अस्पतालों में बिना ऑक्सीजन के कोरोना मरीज तोड़ रहे थे। शवों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाटों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी थीं। तब लोग परेशान तीसरी चुनाव होकर शवों को गंगा में फेंक रहे थे। ये तस्वीरें प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा केंद्र राज्यों की हुकूम रही थी। वह डरावना वक्त शायद अब भूल गए हैं हम, इसलिए फिर उसी दिशा में आगे बढ़ने लगे पर कुछ भी हो जरूरी हैं?

चुनाव जरूरी है।

पंचायत चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को भी संक्रमित होकर अपनी जान गंवाते हम सभी ने देखा, फिर भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। शायद वैसा फिर होनेवाला है। दिल्ली के विज्ञान भवन से पांच राज्यों में चुनाव होने का में बिगुल चुनाव आयोग ने बजा दिया चुनाव आयोग को भी पता की कोविड-19 की तीसरी लहर ने प्रत्येक घरों की चौखट पर दस्तक दी है ? बता दें कि आयोग का ठिकाना भी दिल्ली में हैं, वहां कोरोना की स्थिति कैसी बनी है उनको अच्छे से पता है। लेकिन उनको सिर्फ चुनाव से मतलब है, किसी की जान से नहीं ? चुनाव आयोग अगर कोरोना के मौजूदा आंकड़ों पर थोड़ा सा गौर कर लेता तो और अच्छा होता? राजधानी दिल्ली में मात्र पौने दो करोड़ के आस पास आबादी है, जिनमें रोजाना बीस हजार से ऊपर संक्रमित केस निकल रहे हैं, स्थिति भयावह ही नहीं, बल्कि डरावनी हो चुकी है।

राजधानी में संक्रमण से बिगड़ती स्थिति को देखते हुए केजरीवाल सरकार ने दो दिनों लॉकडाउन लगा दिया है। शनिवार-रविवार को दिल्ली पूरी तरह से लॉक कर दी जाती है। दरअसल, ऐसी स्थिति चुनावी राज्यों में भी है लेकिन उसे प्रचारित नहीं किया जा रहा,क्योंकि वहां किसी भी सूरत में चुनाव कराने हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर व पंजाब में चुनावों की तारीखों का एलान हो चुका है। चुनावी अधिसूचना जारी होने के बाद सं दल पूरी तरह से चुनावी रंगत में हैं। फौरी तौर पर फिलहाल चुनाव आयोग ने इस बार कई तरह की बंदिशे लगाई है। यूं कहें कि पूरी तरह से डिजिटल चुनाव प्रचार पर जोर दिया है। पंद्रह जनवरी तक व्यक्तिगत रूप से हर प्रकार की चुनावी रैलियों पर रोक के आदेश है, सिर्फ डोर-टू-डोर चुनाव प्रचार की इजाजत है। पर सवाल उठता है क्या उनके आदेशों का मुकम्मल तरह से पालन दल करेंगे। बंगाल में भी कमोबेश ऐसी ही बंद आयोग लागू थी, जिनकी वहां खुलेआम धज्जियां उड़ीं, जिनमें सबसे आगे भाजपा पार्टी रही थी।

निश्चित रूप से वैसी ही तस्वीर मौजूदा पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में भी देखने को मिलेगी। पार्टियों के उल्लंघन पर कार्रवाई के नाम पर चुनाव आयोग सिर्फ एक दिन या २४ घंटे के चुनाव प्रचार पर रोक लगाता ज्यादा और कुछ नहीं? आज तक इससे बड़ी कोई कार्रवाई भी नहीं ? उत्तर प्रदेश में किसी हुई भी नहीं। भी तरह का चुनाव हो और वहां दारू न चले, ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा इस बार भी होगा और वह भी खुलेआम। स्थानीय पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के के सामने मतदाता उम्मीदवारों से दारू का क्वॉटर लेकर गटकते दिखेंगे। कुल मिलाकर चुनाव जब अपने चर्म पर होगा तो चुनाव आयोग के तय नियम धराशायी होते दिखेंगे। इसके अलावा आयोग की ओर से जिन प्रतिनिधियों को प्रचार के उल्लंघन का नोटिस जाता है, वह
चुनाव खत्म होने के बाद उन नोटिसों की पतंग बनाकर उड़ाते हैं। कई ऐसे उदाहरण है, जहां चुनाव आयोग की तारीखों की घोषणा के बाद मुख्यालय पर दिल्ली में के लोगों का मेला लग गया। सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों की संख्या में लोग दिखाई दिए, क्या ये तस्वीर चुनाव आयोग को दिखाई नहीं देती। सवाल में सिर्फ इतना हैं, कुछ महीने टाले जा सकते थे ? जनवरी के शुरुआत में कोरोना केसों ने जोर पकड़ा जिससे थर्ड लहर का जोखिम वेब की संभावना प्रबल हुई। अगर तीसरी लहर का आगमन हुआ भी फरवरी-मार्च पीक पर रहेगा। अप्रैल भी चपेट में आ सकता है। कुल मिलाकर अगले तीन महीनों के लिए चुनाव टाले जा सकते थे, क्योंकि ऐसा करने से जानमाल के नुकसान से काफी बचा जा हद तक सकता था लेकिन इस ओर न सरकारों ने गौर किया और न ही चुनाव आयोग ने। तारीखों के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपना पोस्टर जारी किया,जिसकी टैगलाइन है मोदी हैं तो है..योगी हैं तो यकीन है..इससे ये तय हो गया है कि चुनाव प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। गौरतलब है, मौजूदा पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कई मामलों में म पहले व के चुनावों से पृथक होंगे। राजनीतिक पंडित अपना ऊंट किस करवट बैठाएंगे, ये तो वही जानें। बहरहाल, संभावनाओं, अटकलों और आकलनों का दौर शुरू हो चुका और राजनीतिक नफा-नुकसान का गुणा भाग किया जाने लगा है। लेकिन ये तय है कि मौजूदा चुनाव भाजपा के लिए बड़ी चुनती है, क्योंकि उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा और सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार है, उन्हें यथावत रखने को चुनौती मोदी-योगी पर रहेगी क्योंकि इसके बाद ही २०२४ का रास्ता तय होगा।

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