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बीकानेर,सीवर और सैप्टिक टैंकों की सफाई का काम काल बना हुआ है। देशभर के शहरी निकायों में इनकी सफाई की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने के कारण आए दिन सफाईकर्मियों की मौत की खबरें आती रहती हैं। जब-जब खबर आती है, व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त किए जाने का वादा किया जाता है और प्रतीत होता है कि अब किसी की जान नहीं जाएगी। मगर अफसोस, कुछ ही दिन गुजरते हैं कि फिर देश के किसी शहर से वीभत्स मौत की सूचना आ जाती है।

हाल ही में संसद के पटल पर जानकारी सामने आई कि बीते पांच वर्षों में 321 सफाई कर्मचारियों ने होल साफ करते हुए जान गंवा दी। वे कर्मचारी सभी प्रदेशों से हैं यानी कि इस मामले में देश के किसी भी राज्य की सरकार को नियमों सफाईकर्मियों के लिए फिक्रमंद नहीं माना जा सकता है। आश्चर्य की बात तो अमल यह है कि सीवर लाइन की मैनुअल सफाई बंद करने के लिए ठोस नीति बनाने यह का दावा किया गया है। मैनुअल स्कैवेजिंग एक्ट 2013′ के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह प्रतिबंधित है। अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर लाइन में भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के का पालन करना होता है। स्थानीय निकायों के अधिकारी इस नीति का कर रहे होते तो शायद अकाल मौत के ये आंकड़े थम जाते। नियम तो भी बना हुआ है कि स्थानीय निकाय सीवर सफाई में लगे लोगों को आधुनिक मशीनें और गाड़ियां खरीदने के लिए रियायती ऋण देगा लेकिन इस पर

पर भी अमल नहीं हो पा रहा है। प्रतिबंधित होने के बावजूद सीवर लाइन,सेप्टिक टैंक की सफाई का कार्य पूरी तरह मशीनीकृत करने का मानो हमें रास्ता ही नहीं दिखाई दे रहा है। ज्यादातर अधिकारी कानूनी जवाबदेही से बचने के लिए शातिर तरीके से यह काम ठेकेदारों-उप ठेकेदारों से करवाते हैं। मृतकों के परिजन मुआवजे और पुनर्वास के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने को मजबूर है और इस लड़ाई में जीत के नाकाफी होने की गवाही देते हैं प्रसन्न तो यह है कि इन मौतों के लिए जिम्मेदार कौन है सिर्फ नीति बनाना या किताबों में कायदे दर्द कर देना ही पर्याप्त नहीं है देश भर में ऐसे पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए जिनमें जिनसे कि किसी पी सिंडिकेट बैंक में किसी को उतरने की आवश्यकता ही ना पड़े इसके लिए अब तक ही की घटनाओं के दोषियों को दंडित भी किया जाना चाहिए जब तक ठेकेदारों और अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होगी हालात में सुधार की संभावना नहीं हो सकती

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