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यदि आपकी गाड़ी में तेज व कर्कश आवाज पैदा करने वाले हॉर्न लगे हो तो सावधान हो जाए। जोधपुर पुलिस इन दिनों तेज हॉर्न बजाने वालों के खिलाफ सख्ती दिखा रही है। जोधपुर शहर में गुरुवार को एक ही दिन में विभिन्न पुलिस थानों में तेज हॉर्न बजाने वालों के खिलाफ 21 मामले दर्ज किए गए। एक दिन में किसी एक मामले में इस तरह की यह पहली सख्ती है। हालांकि गत कुछ दिन से पुलिस तेज हॉर्न बजाने वालों के खिलाफ लगातार मामले दर्ज कर रही है।

पुलिस का कहना है कि हॉर्न की तेज आवाज से लोगों को परेशानी होती है। कई लोग अपने सामान्य हॉर्न के स्थान पर तरह-तरह की आवाज निकालने वाले हॉर्न लगवा देते है। ऐसी तेज आवाज यकायक किसी वाहन के पीछे सुनाई देने पर ड्राइवर घबराकर नीचे गिर जाते है। इससे कई बार हादसे भी हो चुके है। ऐसे में इनके खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ यकायक जागरुक होने का पुलिस के पास सीधा कोई जवाब नहीं है। ऐसे मामले पुलिस खुद ही दर्ज करती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जिस आवाज़ या संगीत को सुनते हुए आप असहज महसूस ना करें वो कर्णप्रिय या संगीत की श्रेणी में आता है। इसके अलावा अगर आप किसी आवाज़ से कानों में या सिर में तकलीफ़ महसूस करें या असहज हो जाएं वो शोर है। पुलिस के पास ध्वनि प्रदूषण नापने के यंत्र तो है नहीं। ऐसे में पुलिस कानों को अप्रिय लगने वाली आवाज के आधार पर मामला दर्ज करती है।

क्या है गाइड लाइन
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, अगर आवाज़ का स्तर 70 डेसिबल से कम है तो इससे किसी भी सजीव को कोई नुकसान नहीं है, लेकिन अगर कोई 80 डेसिबल से अधिक की आवाज़ में आठ घंटे से अधिक समय तक रहता है तो ये ख़तरनाक हो सकता है। डेसिबल वह इकाई है जिसमें ध्वनि की तीव्रता मापी जाती है।

तेज आवाज से हो सकते है नुकसान
तेज़ आवाज़ का असर बहुत हद तक वैसा ही है जैसा सिगरेट का। जिस तरह सिगरेट पीने वाला सिर्फ़ अपने ही फेफड़ों को नुक़सान नहीं पहुंचाता अपने आस-पास खड़े लोगों को भी बीमार करता है, ध्वनि प्रदूषण भी काफ़ी हद तक वैसा ही है। तेज़ आवाज़ में गाना सुनने वाले या ‘शोर’ करने वाले ना सिर्फ़ ख़ुद को बीमार करते हैं बल्कि जो भी इस शोर की पहुंच में आता है वो भी प्रभावित होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बहुत शोर में रहने वालों की सेहत पर इसका बुरा असर पड़ता है। इसका असर व्यवहार, स्कूल की एक्टिविटी, कार्यस्थल पर, घर पर हर जगह पड़ता है। इससे नींद प्रभावित होती है, जिससे दिल से जुड़ी बीमारियों के होने का ख़तरा बढ़ता है।

क्या कहता है आरएनसी एक्ट
ध्वनि प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए ‘राजस्थान नॉइज कंट्रोल एक्ट-1963 बनाया गया। इसमें स्पष्ट किया गया कि सार्वजनिक और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों के साथ बाजार आदि में आसपास की आवाजों को दबाने वाली तेज आवाज ध्वनि प्रदूषण के दायरे में मानी जाएगी। इस पर कार्रवाई की जाएगी। इस एक्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी तेज आवाज वाले उपकरण जैसे डीजे, लाउड स्पीकर आदि को बजाने का समय निर्धारित कर दिया। रात 10 से सुबह 6 बजे तक इन पर रोक लगाई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद से इस एक्ट के तहत कार्रवाई और मामले दर्ज होने लगे। इन कार्रवाइयों में सीधे एफआईआर दर्ज की जाती है, लेकिन इसमें आवाज की तीव्रता मापने वाले यंत्र का होना भी जरूरी है।

क्या है सजा का प्रावधान
आईपीसी की धारा 290 के तहत ध्वनि प्रदूषण करने पर 200 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। वहीं धारा 291 के तहत एक बार केस दर्ज होने पर ध्वनि प्रदूषण फैलाने की गलती दोहराने पर 6 माह के कारावास व 1 हजार रुपए के जुर्माना का प्रावधान है।

 

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