जयपुर जोधपुर राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं देने का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। राज्य मानवाधिकार आयोग ने राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलने को इसे बोलने वाले प्रदेशवासियों के मानवाधिकारों का हनन माना है। इस मामले में केन्द्रीय गृह (राजभाषा) सचिव व प्रदेश के मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर=रिपोर्ट तलब की है।
आयोग अध्यक्ष गोपाल कृष्ण व्यास व सदस्य महेश गोयल की खण्डपीठ ने जोधपुर की सामाजिक संस्था सत्यमेव जयते के अध्यक्ष विमला गट्टानी, ललित सुराणा व प्रवीण मेढ़ के परिवाद पर प्रसंज्ञान लिया है। आयोग अब इस मामले में 24 जनवरी को सुनवाई करेगा। इससे जनवरी केन्द्र वा किया। मुख्य सचिव से रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।
आयोग का कहना है कि हर व्यक्ति अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी भाषा में ही गुहार लगा सकता है। प्रदेश में जगह-जगह राजस्थानी भाषा बोली जाती है। गरीब जनता अपना पक्ष सिर्फ अपनी भाषा में ही मजबूती से रख सकती है।
2003 में भेजा गया केन्द्र को प्रस्ताव
आयोग ने बताया कि राज्य सरकार ने 25 अगस्त, 2003 को राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने के लिए प्रस्ताव केन्द्र सरकार को
परिवाद भी राजस्थानी
राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत संवैधानिक मान्यता दिलाने की ‘गुहार करते हुए राज्य आयोग में पेश परिवाद राजस्थानी भाषा में भेज दिया, लेकिन इसे संवैधानिक भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। इससे इसे बोलने वालों के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।
में और आदेश भी
दिया गया है और इस पर केन्द्रीय गृह (राजभाषा) सचिव व प्रदेश के मुख्य सचिव को राज्य आयोग की ओर से भेजा गया आदेश भी राजस्थानी में है।