बीकानेर। एमजीएसयू के सेंटर फॉर विमेंस स्टडीज और कालीकट विश्वविद्यालय, केरल के यूनिटी वूमंस कॉलेज के इतिहास विभाग द्वारा संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में बोलते हुए बीज वक्ता प्रो. तेज कुमार माथुर ने कहा कि भारत की संस्कृति महिलाओं के मामले में बहुत सारे फलक प्रस्तुत करती है। वैदिक काल में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था, किंतु आधुनिक भारत तक आते-आते कई कुरीतियां भारत में पसर गई, जिनका निवारण समाज सुधारकों द्वारा किया गया। इनमें महर्षि दयानंद सरस्वती का नाम प्रमुख था।
लेखिका हरमीत कौर भल्ला ने अपनी कविताओं के माध्यम से इतिहास में महिलाओं के स्थान को प्रतिपादित करते हुए अपनी बात मंच से कही। लंदन से ग्लोबल संस्थाओं की राजदूत ज्योतिर्मया ठाकुर ने सदियों से महिलाओं को हाशिए पर पटके जाने की प्रक्रिया के चरणों को शामिल करते हुए अपना संबोधन दिया और कहा कि पुरुष और महिला दोनों को लैंगिक समानता पर काम करना होगा तभी भारत में महिलाओं का सम्मान अधिक सुरक्षित हो सकेगा।
आयोजन का संचालन करते हुए सेंटर फॉर विमेन स्टडीज के डायरेक्टर अंतरराष्ट्रीय वेबीनार की आयोजन सचिव डॉ. मेघना शर्मा ने एतिहासिक परिपेक्ष्य में महिलाओं के साथ हुए भेदभाव का जिक्र करते हुए वेबीनार के विषय का शाब्दिक चित्रण प्रस्तुत किया।
रोहतक विश्वविद्यालय के प्रो. भूप सिंह गौड़ आधुनिक इतिहास में अनंता बाई जोशी, पंडिता रमाबाई और सावित्रीबाई फुले के महिला उत्थान विषयक सुधारों पर प्रकाश डाला।
मुख्य अतिथि, जम्मू से प्रो. विश्वरक्षा ने कहा कि समाज की प्रवृत्ति है कि वह सारे सवाल महिला से ही करता आया है पुरुष से नहीं। उन्होंने कश्मीर में भ्रूण हत्या जैसी समस्याओं को मंच से पुरजोर रूप से उठाया।
वेबीनार की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. विनोद कुमार सिंह ने कहा की महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं और रहेंगे। एक पक्ष का कमजोर होना समाज को असंतुलित कर देता है और यहीं से दमित पक्ष में असुरक्षा की भावना जन्म लेने लगती है, जिसे सुधारा जाना परम आवश्यक है।
धन्यवाद ज्ञापन यूनिटी वूमेंस कॉलेज केरल के इतिहास विभाग के अध्यक्ष व सेमिनार के संयोजक शबीरमोन. एम. द्वारा दिया गया।
आयोजन सचिव डॉ मेघना शर्मा ने बताया इटली, मॉरीशस अमेरिका आदि देशों के अलावा देशभर के इक्कीस राज्यों से शोधार्थियों व विद्वानों ने वेबीनार में हिस्सा लिया, जिसमें 400 से अधिक रजिस्ट्रेशन हुए और 50 से अधिक शोध पत्र प्रकाशन हेतु प्राप्त हुए।