बीकानेर/तेजरासर। पक्षी इंसानों की तरह बोल नहीं सकते लेकिन प्रेम की भाषा अच्छे से समझते है। यह साबित भी होता है। ऐसा ही इंसान और पक्षियों के प्रेम का एक सिलसिला वर्षों से चल रहा है। अनबोल पक्षी अपने इंसान दोस्त को देखते ही उसके नजदीक आ जाते है। वह जब उसे दाना डालती है तो वह उसे चुग कर फिर उड़ जाते हैं और अगले दिन फिर आ धमकते हैं। यह नजारा इन दिनों बीकानेर जिले की लाखुसर ग्राम पंचायत परिसर में देखने को मिलता है। लाखुसर में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर पदस्थापित संतोष भील का कौवों से प्रेम है। कौवे उसे देखते ही पंचायत परिसर में जमा हो जाते हैं। इन कौवों की संख्या करीब २५० से अधिक होती है।
पांच साल से कौवों को खिला रही दाना
लाखुसर ग्राम पंचायत में विकास अधिकारी के पद पर कार्यरत संतोष का पक्षियों से प्रेम पिछले पांच साल से चल रहा है लेकिन लाखुसर में आठ माह में कौवों से इतना प्रेम हो गया कि वह जब सुबह ऑफिस पहुंचती है तो कौवों की कांव-कांव से पूरा परिसर गुंज जाता है। कौवें उन्हें घेर कर खड़े हो जाते हैं। इतना ही नहीं कौवें उनके हाथ, सिर व कंधों पर बैठ जाते हैं। भील बताती है कि वह पिछले पांच साल से कौवों सहित अन्य पक्षियों को दाना डालती है। वह जहां भी पदस्थापित रही वहां पक्षियों को दाना डालनी कभी नहीं भूली। लाखुसर में पिछले आठ माह से कौवों को लगातार दाना डाल रही है। पहले दो-तीन कौवे आते थे अब इनकी संख्या २५० से अधिक हो गई है। वे बताती है कि दाना डालने वाली जगह वह अकेली होती है तो कौवें उसके हाथ-सिर व कंधे पर बैठ जाते हैं अन्यथा दूर खड़े रहते हैं।
दाना नहीं डालती तब तक चुप नहीं होते
संतोष बताती है कि हर रोज सुबह कौवें उसका इंतजार करते रहते हैं। जब उसकी गाड़ी परिसर में पहुंचती है तो कौवें की कांव-कांव करने लगते हैं। वह जब तक उन्हें दाना नहीं डालती वह चुप नहीं होते। इतना ही नहीं कौवों उसके इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। दाना डालने के बाद वह उड़ जाते हैं। कौवों को पहचाना मुश्किल होता है सब एक जैसे लगते हैं लेकिन कौवें उसकी गाड़ी तक को पहचानते हैं। कभी-कभार वह गाड़ी से नहीं उतरती है तो कौवों निराश हो जाते हैं।
पक्षियों के लिए निर्धारित खर्च
विकास अधिकारी संतोष बताती है कि वह पांच साल से पक्षियों को दाना डाल रही है। वह बीकानेर में रहती है। वहां भी नियमित रूप से पक्षियों को दाना डालती हूं लेकिन लाखुसर में पिछले आठ महीने से लगातार कौवों को दाना डाल रही हूं। हर माह पक्षियों के चुगे के लिए निर्धारित रकम खर्च करती हूं। अब कौवों से छोटे-बच्चों की तरह लगाव हो गया है।