बीकानेर,23 साल बाद बीकानेर की सेंट्रल जेल में गलीचा उद्योग को फिर से शुरू करने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए जयपुर रग कंपनी से एमओयू हुआ है। मार्च के बाद नया सेटअप लग सकता है। जेल प्रशासन ने डीजी को इस संबंध में फेक्चुअल रिपोर्ट भेजी है।
रियासतकाल में गलीचा उद्योग की नींव बीकानेर जेल में रखी गई थी लेकिन 1998 में यह काम बंद हो गया। सरकार की मंशा के अनुरूप अब इसे वापस शुरू करने की कवायद जेल विभाग ने शुरू की है। डीजी जेल के निर्देश पर अधीक्षक आर. अनंतेश्वर ने गलीचा उद्योग लगाने के संबंध में फेक्चुअल रिपोर्ट तैयार कर भेजी है। वर्तमान में जेल में स्थापित गलीचा फैक्ट्री में लगी मशीनें और लूम अब काम के नहीं रहे। जेल में छोटी बड़ी मिलाकर रियासतकाल की आठ लूम थी, जिसमें से एक जयपुर भेज दी गई थी। बाकी सभी सार संभाल के अभाव में वे डेमेज हो चुकी हैं। गलीचा उद्योग को वापस शुरू करने के लिए छोटी मशीनें लगाने की आवश्यकता जताई गई, जिनपर 6×4 साइज तक का गलीचा बनाया जा सके। इसके लिए पहले कैदियों को ट्रेनिंग दी जाएगी। जेल मुख्यालय स्तर पर इसके लिए जयपुर रंग कंपनी से एमओयू किया गया है। कंपनी बीकानेर जेल में कैदियों को ट्रेनिंग देगी। गलीचा बनाने का काम करने वाले कैदियों को मेहनताना भी दिया जाएगा।
रियासतकाल में जेल में बंद कैदियों को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से पूर्व महाराजा गंगा सिंह ने गलीचा उद्योग शुरू किया था। इसके लिए उन्होंने ब्रिटेन से दो बड़ी लूम मंगवाई थी इतिहासकार डॉ. शिव कुमार भनोत के अनुसार बीकानेर जेल के बने गलीचों की क्वालिटी इतनी बेहतरीन थी कि लंदन और ब्रिटेन में इनकी मांग बढ़ गई। इसे देखते हुए जेल में आठ लूम लगा दी गई। लेकिन 1998 में यह उद्योग बंद हो गया। कहा जाता है कि एक बार गंगा सिंह ब्रिटेन से एक गलीचा खरीदकर लाए थे दरबार में उसकी बहुत तारीफ हुई। जब गलीचे को उलटकर देखा तो उस पर बीकानेर जेल की मुहर लगी थी।
कैदियों को रोजगार देने पूर्व महाराजा ने जेल में शुरू किया था गलीचा उद्योग
बीकानेर जेल में गलीचा उद्योग वापस शुरू किया जाएगा। इसकी फेक्चुअल रिपोर्ट डीजी को भेजी गई है। गलीचा बनाने के लिए नई मशीने लगानी होगी। इसमें खर्चा ज्यादा नहीं है। डीजी से मार्ग दर्शन मिलने के बाद काम शुरू किया जाएगा।
आर. अनंतेश्वर, जेल अधीक्षक
हैंड मेड कारपेट विश्व में सबसे ज्यादा भारत में बनाया जाता है और बीकानेर वूलन याने के लिए देश का सबसे बड़ा सप्लायर है। यहां प्रतिदिन दो लाख किलो यार्न का प्रोडक्शन होता है। जेल में गलीचा उद्योग फिर से शुरू होगा तो कैदियों के लिए काम की कमी नहीं रहेगी।
कमल कल्ला, अध्यक्ष, राजस्थान कूलन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन