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बीकानेर,लेखिका तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम असाधारण साध्वी प्रमुखा हैं जो गत पचास वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने, स्वस्थ परिवार स्वस्थ समाज के निर्माण का अदभुत कार्य कर रही हैं। उनके प्रेरणादायक आलेखों से जीवन को सही दिशा मिलती है। जीवन को देखने का अलग दृष्टिकोण मिलता है। ऐसी महान साध्वी प्रमुखा कनकप्रभाजी के मनोनयन दिवस पर अभिवंदना।

स्वस्थ समाज को चाहिए स्वस्थ चिंतन
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा
चार मित्र गांव के बाहर बैठकर बतिया रहे थे। उनमें एक बहरा था, दूसरा अंधा था, तीसरा लंगड़ा था और चौथा भिखारी था। सहसा बहरा व्यक्ति चौककर बोला- क्या बात है? घोड़ों की टापें सुनाई दे रही है। यह बात सुनते ही अंधा कहने लगा सुनाई क्या दे रही हैं. देखों सामने घोड़ों पर चढ़े हुए डकैत हमारी ओर ही बढ़ रहे हैं। डकैतों की बात सुनते ही लंगड़ा मित्र बोला- यहां खड़े रहना खतरे से खाली नहीं है। हम अपनी पूरी शक्ति के साथ दौड़कर इनकी आंखों से ओझल हो जाएं। भिखारी जो चुपचाप खड़ा था. हड़बड़ाकर बोला- भाई जल्दी करो। तुम्हारा कुछ नहीं होगा, मैं मारा जाऊंगा। डकैत मेरा सबकुछ लूटकर ले जाएंगे।
कल्पना के आकाश में उड़ान भरने वाले उन चार मित्रों का क्या हुआ, इस बात में अपने दिमाग को न भी लगाएं तो भी आज व्यक्ति व्यक्ति के साथ ऐसा घटित हो रहा है, जो किसी भी चिंतनशील व्यक्ति के दिमाग को डिस्टर्व किए बिना नहीं रहता। आज का आदमी यथार्थ की धरती पर पांव टिकाए बिना ही कल्पना के लोक में विहार करने के लिए उतावला हो रहा है, यह इस युग की एक बड़ी समस्या है। कांट के अनुसार नैतिकता के तीन आधार हैं- संकल्प की स्वतंत्रता आत्मा की अमरता और ईश्वर भारतीय परिवेश में जीने वालों के सामने ये तीन आधार काफी पुष्ट हैं। अपने सुख दु:ख का कर्ता व्यक्ति स्वयं होता है। वह जैसी प्रवृत्ति करता है. वैसा ही उसका परिणाम आता है। इस सिद्धांत को समझने के बाद व्यक्ति उसी बात का संकल्प करेगा, जो उसे शांति और आनंद का अनुभव दे सके। संकल्प की स्वतंत्रता के साथ आत्मा की अमरता में विश्वास न हो तो व्यक्ति का संकल्प शिथिल हो सकता है। जब वह गलत मूल्यों में जीने वाले लोगों को प्रख्याति और समृद्धि के छोर पर खड़ा देखता है तो उसके मन में भी एक विकल्प उत्पन्न हो सकता है। किन्तु जो व्यक्ति यह जानता है कि आज नहीं तो कल, बोया हुआ बीज तो उगेगा ही। अप्रामाणिकता से जीने वाला व्यक्ति आज स्वयं को सुखी मानता है तो कल दु:ख भी उसके दरवाजे पर दस्तक देने वाला है। आत्मा को अमर मानने वाला व्यक्ति उक्त धारणा पर गलत रास्ते पर चलते समय प्रकम्पित अवश्य होता है, फिर चाहे वह किसी भी कारण से उस मार्ग पर चलने के लिए विवश हुआ हो। ईश्वर की सत्ता और हर आत्मा में ईश्वर बनने की क्षमता को स्वीकार करने वाला व्यक्ति अपने जीवन के शांत एवं एकांत क्षणों में निश्चित रूप से यह सोचता है कि उसके द्वारा कोई ऐसा काम न हो जाए, जो
उसके भविष्य को अंधकारमय बना दे। इस चिंतन के बावजूद उसके जीवन में ऐसे नाजुक क्षण आ जाते हैं, जिनमें उसका मन दुर्बल होता है और वह किसी अकरणीय कार्य में प्रवृत्त हो जाता है किन्तु इस प्रवृत्ति की टीस उसे व्यथित करती रहती है और एक न एक दिन वह अपना रास्ता बदलने या बनाने में सक्षम हो जाता है। समाज का आधार है, नैतिकता या धार्मिकता और व्यवस्था का आधार होता है समाज जिस व्यवस्था में नीति या धर्म के तत्व नहीं होते, वह चल नहीं पाती। इसलिए यह आवश्यक है कि स्वस्थ समाज का निर्माण करने के लिए आदर्शवादी चिंतन को ठोस धरातल मिले।
साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा के अमृत महोत्सव पर अभिवंदना स्वरूप अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल द्वारा प्रदत आलेख जो जीवन को सही दिशा देता है।

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