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  • बीकानेर,केद्र और राज्य सरकारों के मुकाबले भारतीय शेयर बाजार कोरोना के नए वैरिएंट के खतरे को शायद बेहतर ढंग से समझ रहा है। तभी तो पिछले दो दिनों में सेंसेक्स दो हजार से अधिक अंक लुढ़क चुका है। पिछले साल मार्च में कोरोना के मामले बढ़ने पर दुनियाभर के शेयर बाजारों में मचा कोहराम अधिक पुरानी बात नहीं है। दक्षिण अफ्रीका से निकले कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को फिर से आशंका के भंवर में डाल दिया है। अमरीका और यूरोपीय देशों में कोरोना के बढ़ते मामले फिर डराने लगे हैं। ब्रिटेन में तो हाल ही तीन दिन तक लगातार एक दिन में सर्वाधिक मामलों के रेकॉर्ड कायम हुए हैं। कोरोना के कहर से बचने के लिए नीदरलैंड्स में क्रिसमस के जश्न के बीच लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई है। जर्मनी ने तो ब्रिटेन से पर्यटकों के अपने यहां आने पर ही रोक लगा दी है। शेयर बाजार की तरह आखिर हम लोग भावी खतरों को भांप कर उसके अनुरूप व्यवहार क्यों नहीं कर रहे? वैज्ञानिकों की चेतावनी को दरकिनार करने के नतीजे हम पहले देख चुके हैं। एक दौर में तो पूरा देश ही अस्पताल नजर आने लगा था। दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने फिर चेतावनी देनी शुरू कर दी है। कोई जनवरी, तो कोई फरवरी में तीसरी लहर की आशंका जता रहा है। स्कूल कॉलेज खुलने के बाद शादी-विवाह भी परवान पर रहे। देश के सबसे बड़े राज्य के साथ-साथ चार राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने ही वाला है। इन राज्यों में रैलियों और जनसभाओं के जरिए वोट जुटाने का काम सुरु हो चुका है। तमाम हिदायतों के बावजूद मास्क कम दिख रहे हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग की भी किसी को परवाह नहीं दिख रही। ऐसे में क्या हम तीसरी लहर को खुद दावत नहीं दे रहे? इतना सब भुगत चुकने के बाद भी संभलने को तैयार नहीं! केंद्र से लेकर तमाम राज्य सरकारें सक्रिय दिखने के प्रयास तो कर रही हैं, लेकिन वाकई में जितनी सक्रियता दिखनी चाहिए, दिख नहीं रही। आज के माहौल को देखकर लगता नहीं कि पहली और दूसरी लहर के दौरान इतना कुछ लुटा देने के बाद भी हम होश में आना चाहते हैं। नया वैरिएंट तेजी से पांव पसार रहा है लेकिन सख्ती करने वाला कोई नहीं। सरकारें फिर से सख्ती के मूड में दिख नहीं रही हैं। नेताओं से लेकर जनता इस भुलावे में बैठी है कि वैक्सीन तो लग गई, अब कोरोना हमारा क्या बिगाड़ लेगा। यही गलती यूरोपीय देशों ने की थी, जिसका नतीजा उन्हें अब भुगतना पड़ रहा है। हमें उन गलतियों से सबक लेने की जरूरत है ताकि हमें भी आगे जाकर किसी तरह के दुष्परिणाम न भुगतने पड़ें।

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