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बीकानेर,एक व्यक्ति की हठधर्मिता से लोकसभा की कार्यवाही ठप होती जा रही है। लोकतंत्र का इससे बड़ा अपमान और क्या हो सकता है। एक व्यक्ति,एक सांसद,एक मंत्री या एक खलनायक ? जांच कमेटी कहती है कि लखीमपुर की घटना पूर्व नियोजित दुर्घटना-षड्यंत्र के रूप में थी। क्या इसे राक्षसी आचरण नहीं कहा जाएगा? पिता सत्ताधीश (केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री) हों तब क्या यह नहीं माना जाएगा कि पिता के पद व प्रभाव का यह बेजा इस्तेमाल हुआ है। लाल बहादुर शास्त्री रेलमंत्री थे। एक बड़ी रेल दुर्घटना के कारण त्यागपत्र दे दिया था। और अजय मिश्रा ?

सरकार मौन,विपक्ष मुखर,लोकसभा स्थगित पक्ष-विपक्ष आमने सामने। यह तो वही दृश्य दोहराया जा रहा है जो किसान आन्दोलन के समय था। मूंछ की लड़ाई का। यह वास्तव में एक अपराधी को आश्रय देने का मुद्दा है। अपराधी का कोई रंग नहीं होता। सरकार को अजय मिश्रा को निकाल बाहर करना चाहिए। नहीं तो, सरकार की छवि पर काला टीका जड़ जाएगा। चुनाव सिर पर हैं। किसान आन्दोलन की कीमत पंजाब में चुकानी पड़ सकती है, लखीमपुर की घटना उत्तरप्रदेश में अपनी छाप छोड़कर रहेगी। ऐसा लगता है कि अजय मिश्रा को सरकार सोने की छुरी मानकर अपने ही पेट में घोंप रही है।
पिछले कुछ वर्षों में हमारा लोकतंत्र जड़ से उखड़ता दिखाई पड़ रहा । केन्द्र हो अथवा राज्य सरकार। दोनों ही अपनी मूल भूमिका को छोड़ रहे हैं। सरकारों की परिभाषा बदल रही है। जनता सरकार बनाने के लिए किसी एक दल को चुनती है। वह सरकार बनाकर अपने दल की प्रतिष्ठा कर देती है। केन्द्र में भाजपा की, राजस्थान में कांग्रेस की सरकार क्या मतलब हुआ! क्या केन्द्र में भारत सरकार नहीं होगी और राज्य में राज्य सरकार नहीं होगी? क्या विपक्ष का प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री दूसरा कोई होगा? सरकार में बैठे हुए जनप्रतिनिधि के लिए पक्ष-विपक्ष दो हाथ हैं। पक्ष भी उसका, विपक्ष भी उसका। आज तो सत्तापक्ष विपक्ष को शत्रु मानकर व्यवहार कर रहा है। दोनों पक्ष एक-दूसरे की आलोचना में व्यस्त हैं। पत्थरबाजी पर उतर आए हैं। सत्ता पक्ष को यह कहते सुना जा सकता है कि जनता विपक्षी दलों को वोट नहीं दे। पी.एम./सी.एम. तो विपक्षी दलों के भी ये ही हैं। यह कार्य इनके संगठनों का है, इनका नहीं हो सकता। संगठनों के अनुसार सरकार नहीं चलनी चाहिए। सारे निर्णय देशहित में कानून के अनुसार होने चाहिए। यह कहना उचित नहीं है कि सरकार किसी एक दल की है। सरकार बनने के बाद सदन की है, जनता की है।
अजय मिश्रा मंत्री है, देश के मंत्री हैं। किसी दल के नहीं। यही आधार होना चाहिए निर्णय का। पक्ष-विपक्ष मिलकर ही सरकार चलाते हैं। विपक्ष का होना ही लोकतंत्र का प्रमाण है। दोनों मिलकर देशहित में निर्णय करें, यही लोकतंत्र है। अजय मिश्रा की भाषा स्वयं आपत्तिजनक है। लोकतंत्र को अपमानित करने की, एक बाहुबली द्वारा 130 करोड़ नागरिकों के सम्मान की अवहेलना करने वाली है। क्षमा मांगना तो शायद स्वभाव में नहीं है। ऐसे व्यक्ति को गृह विभाग जैसा दायित्व देना सरकार को मुसीबत में ही डालेगा। वैसे भी एक व्यक्ति यदि सम्पूर्ण राष्ट्र की भावनाओं को नकारता है और उसको बचाने के लिए यदि संसद ठप हो जाए, तो क्या यह लोकतंत्र का अपमान नहीं है? देश में जब कोई अपूरणीय क्षति होती है, तब संसद का सत्र रद्द हो, झण्डे झुकें तो समझ में आता है। किन्तु किसी आचरणहीन व्यक्ति के दुःसाहस को आश्रय देने के लिए ऐसा होता है, तो यह तो अपने आप में ही राष्ट्रीय क्षति है।

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