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  • बीकानेर,नशीले पदार्थों की तस्करी के दर्ज प्रकरणों के न आंकड़ों को देखकर राजस्थान की पुलिस ही ज्यादा कार्रवाई करने की बात कहे, लेकिन इसका दूसरा एवं चिंताजनक पहलू यह भी है कि प्रदेश नशे का गढ़ बनता जा रहा है। इस बात को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि नशीले पदार्थों की तस्करी एवं नशाखोरी का दायरा बढ़ा है, तभी तो पुलिस कार्रवाई के मामलों की संख्या बढ़ी है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जो रिपोर्ट आई है, उसमें आंकड़ों के दृष्टिकोण से देखें तो प्रदेश की तस्वीर बेहद भयावह है। हालत यह है कि धार्मिक स्थलों से लेकर पर्यटन स्थल एवं शिक्षा के केंद्र भी इस नशे से अछूते नहीं बचे हैं। पिछले ढाई साल में प्रदेश में नशीले पदार्थों की तस्करी के सोलह हजार 768 प्रकरण दर्ज हुए, वहीं बीस हजार से ज्यादा गिरफ्तारियां भी हुई। जिलों की बात करें तो उदयपुर नशाखोरी के मामले में सबसे आगे है। राजधानी जयपुर का तीसरा स्थान है। हैरत की बात तो यह है कि उदयपुर एवं जयपुर के मुकाबले बेहद छोटे जिले श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ भी नशा तस्करी एवं नशाखोरी के मामले में इनके समकक्ष ही हैं। गंभीर विषय यह भी है कि नशे के मामले में बदनाम पंजाब के आंकड़े भी प्रदेश से कम हैं। आंकड़ों पर नजर डालें और औसत निकाला जाए, तो श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ में तो रोजाना ही एक से ज्यादा मामले दर्ज हो रहे हैं। दोनों जिलों में नशा गांव-गांव, ढाणी-ढाणी तक घुसपैठ कर चुका है।

विचारणीय यह भी है कि नशे के प्रकार भी अब बढ़ रहे हैं। सस्ते नशे के साथ-साथ महंगा नशा भी पैर पसार रहा है। शराब, अफीम व पोस्त के साथ मेडिकेडेट नशा भी तेजी से बढ़ा है। पुलिस कार्रवाई में नशे की गोलियां बरामद करने का आंकड़ा काफी बढ़ा है। स्मैक, चिट्टा एवं हेरोइन तस्करी के मामले भी सामने आने लगे हैं। कभी पंजाब में खेतों में श्रमिकों से ज्यादा काम लेने के लिए उनको पोस्त की चाय पिलाई जाती थी। इसका असर श्रीगंगानगर एवं हनुमानगढ़ पर भी पड़ा। पोस्त जब प्रतिबंधित हुआ, तो नशे के आदी मेडिकेडेट नशा अर्थात टेबलेट खाने लगे। वैसे तो नशाखोरी के खिलाफ पुलिस एवं कई स्वयंसेवी संगठन समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाते रहते हैं। नशामुक्ति केंद्र भी बड़ी संख्या में चल रहे हैं। इसके बावजूद नशा बढ़ रहा है, तो जागरूकता अभियानों एवं नशामुक्ति केंद्रों को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत है।

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