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बीकानेर,चुनाव लड़ो देवी सिंह भाटी जी। चुनाव लडना ही पड़ेगा। ऐसा मत करो चुनाव लड़ो। आप को चुनाव, राजनीति और लोकतंत्र से वितृष्णा कैसे हो गई? आप तो समाज और लोकतंत्र के शुभ चिंतक हो। अर्जुन की तरह कर्तव्य पथ से विमुख कैसे हो रहे हो ? आपने राजनीति अपने अहंकार की तुष्टि के लिए या स्वार्थ के लिए तो नहीं की होगी। राजनेता तो जनता की सेवा के लिए होते हैं। आपके 35 साल तक चुने जाने के कार्यकाल में जन हित के कार्यों की लम्बी फेहरिस्त होगी ही। राजनीति तो जन सेवा है। क्या आप जन सेवा नहीं करोगे ? आप इससे मुख क्यों मोड़ रहे हो ? हालांकि आपने कुछ साल पहले भी कहा था की चुनाव नहीं लडूंगा फिर भी लड़े थे। फिर यही बात दोहराकर राजनीति करने का नया मार्ग तो अख्तियार तो नहीं कर रहे हो ? राजनीति, लोकतंत्र और चुनाव से वितृष्णा का यह तो कारण नहीं है कि चित्त, वृति और मन स्वामी रामसुख दास जी की तरह निर्मल जल की तरह हो गए हों। अगर ऐसा है तो निरपेक्ष होकर राजनीति के मंच से जन सेवा करो ना। वितृष्णा क्यों करते हो। एक तरफ आप कहते हो राजनीति खून में है राजनीति तो कर ही रहे हो। बीकानेर के चौराहों पर आपके शस्त्र_शास्त्र सर्व समाज को सीखने के बड़े बड़े हार्डिंग्स क्यों लगाए हैं ? समर्थक भाजपा में लेने का मुद्दा उठा रहे हैं। आयुर्वेद की पुस्तक विमोचन और गोचर के भले काम में आपका राजनीतिक साम्मर्थ्य ही फलीभूत हो रहा है। जनप्रतिनिधि का आपका कर्तव्य है। इस कर्तव्य धर्म से विमुख मत होइए। चुनाव लड़े और राजनीति करें। नेताओं की राजनीति करने की तृष्णा कभी पूरी हुई है क्या ? लोगों में यहीं संदेश है… समझे ।

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