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बीकानेर, “अनुवाद एक सशक्त ऐतिहासिक अभिव्यक्ति है, भारतीय इतिहास लेखन पर आपत्तियाँ एवम् विमत्तियाँ पैदा होने के मूल में अनुवाद ही है। भारतीय अनुवादक इस दृष्टि से अपने कर्त्तव्य को पूर्ण करने में विफल रहा है। हमें “ट्रांसलेशन” एवम् “अनुवाद” में भी अन्तर करना होगा। भारत में ट्रांसलेशन ब्रिटिश शासक ही लेकर आये एवम् “अनुवाद” को ट्रान्सलेशन से प्रतिस्थापित कर दिया गया। ब्रिटिश शासकों के इस “षड़यन्त्र” को भी हमें समझना होगा।” उपर्युक्त विचार भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के अध्यक्ष प्रो० कपिल कपूर ने महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग एवम् केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा के अंग्रेजी एवम् विदेशी भाषा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्यवक्ता के रूप में बोलते हुए व्यक्त किये।

• संगोष्ठी के विषय के चयन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए प्रो० कपूर ने कहा कि भाषा एवम् साहित्य के योगदान पर संगोष्ठियाँ प्रायः सभी भाषा एवम् साहित्य विभाग करते है किन्तु “अनुवाद” पर चर्चा कोई विभाग नहीं करता। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए महात्मा गाँधी अर्न्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० रजनीश शुक्ला ने कहा कि भारत में अनुवाद को उचित एवम् औचित्यपूर्ण स्थान नहीं मिला है। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अनुवाद को उचित स्थान दिया गया है। स्वातंत्र्योत्तर भारत में आवश्यक है कि अंग्रेजी एवम् अन्य विदेशी भाषा विभागों को तुलनात्मक साहित्य विभाग में परिवर्तित कर दिया जावे, ऐसा करने से अनुवाद को हमारे साहित्यक अध्ययन के विषयों में उचित स्थान प्राप्त हो सकेगा। रायसेन (मध्यप्रदेश) विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो० नीरजा अरूण गुप्ता ने कहा कि भाषा एक संस्कृति की वाहक है, क्या एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। अतः पश्चिम से उधार ली हुई शब्दावली यथा “टांसलेशन” की बात करना बन्द करना होगा और इसके स्थान पर हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित “अनुवाद” की संस्कृति को आगे बढ़ाना होगा जिससे हम विभिन्न संस्कृतियों एवम् समाज को सुगमतापूर्वक समझ सके। “ट्रांसलेशन” गुलामी की संस्कृति का द्योतक है जबकि अनुवाद “स्व” संस्कृति का

कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो० पी.के. दशोरा ने कहा कि अनुवाद की संस्कृति भारत में प्रारम्भ से रही है किन्तु ट्रांसलेशन का अभ्युदय अंग्रेजों के साथ ही हुआ। अगर भारत के पास अनुवाद जैसा अस्त्र नहीं होता तो सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाँधना संभव नहीं था। एकता के अभाव में स्वाधीनता आन्दोलन के बारे में सोचना भी संभव नहीं था। आदिवासी साहित्य एवम् विवेकानंद जी के विचारों को विस्तार से अभिव्यक्त करते हुए प्रो० दशोरा ने कहा कि अनुवाद के माध्यम से ही महापुरूषों के विचार आदिवासी जन तक भी पहुॅचे और इसने भारत को स्वाधीनता दिलाने में भरपूर सहायता की।

संगोष्ठी के प्रारम्भ में अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो० एस. के. अग्रवाल ने कहा कि अनुवाद के सम्बन्ध में ब्रिटिश शासकों द्वारा अपनाई गई षड्यन्त्रकारी नीति का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी भाषा एवम् अंग्रेजी संस्कृति की भारतीय भाषाओं एवम् भारतीय संस्कृति पर सर्वोच्चता सिद्ध करना था। कार्लमार्क्स के डच औपनिवेशवाद से सम्बन्द्ध कथन को उदृत करते हुए प्रो० अग्रवाल ने कहा कि कार्लमाक्स की यह टिप्पणी की डच उपनिवेशवादी व्यापारी, चोर एवम् ट्रांसलेटर थे, कुछ सीमा तक भारतीय उपनिवेशवाद पर भी लागू होता है। भारतीय भाषायें अंग्रेजी भाषा की तुलना में कई गुना समृद्ध थी, अतः अंग्रेजी उपनिवेशवादियों के हाथ में “ट्रांसलेशन” अंग्रेजी की दरिद्रता को छिपाने का एक अस्त्र बन गया। डॉ० अग्रवाल ने कहा कि अनुवाद की महत्ता को देखते हुए अब “जगत सर्वम शब्देन भाषते” के स्थान पर “जगत सर्वम अनुवादेन भाषते” वाक्यांश का प्रयोग जाना चाहिये।

उद्घाटन सत्र में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 विनोद कुमार सिंह ने कहा कि अनुवाद की परम्परा भारतीय जनमानस का आधार रही है, यही कारण है कि रामायण रामकथा के रूप में लोकप्रिय

है। अनुवाद के माध्यम से विभिन्न तरीकों में इसकी चर्चा की जाती है। राजस्थानी के प्रसिद्ध विद्वान विचारक गणेशीलाल व्यास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एक अनुवादक के रूप में राष्ट्रीय चेतना की अलख जगाने में उनके द्वारा किये गये योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है।

उद्घाटन सत्र के पश्चात् हुए सत्र में प्रो० एन. के. पाण्डे राजस्थान विश्वविद्यालय, प्रो० कल्पना पुरोहित, जयपुर

नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, प्रो० अतनु महापात्रा ने व्याख्यान दिया। सत्र का संचालन सहायक आचार्य डॉ० सीमा शर्मा ने किया एवम् धन्यवाद सहायक आचार्य डॉ० प्रगति सोबती ने किया उद्घाटन सत्र के पश्चात हुए सत्र में मोडरेटर की भूमिका का निर्वहन प्रो० एस. के. शर्मा, इलाहबाद विश्वविद्यालय व अतनु महापात्रा, केन्द्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात ने किया। इस अवसर पर वेबिनार पत्रिका का भी विमोचन किया गया

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