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बीकानेर,लखनऊ, भाजपा ने अपने सबसे विश्वस्त चुनावी रणनीतिकार अमित शाह को उत्तर प्रदेश के सबसे कठिन मोर्चे पर लगाया है। उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस मोर्चे पर पार्टी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो जाट किसान समीकरण के कारण चुनाव की दृष्टि से इस समय बेहद संवेदनशील है। पिछले चुनाव में भाजपा की कुल 312 सीटों में से एक तिहाई यानी 103 सीटें केवल इसी क्षेत्र से हासिल हुई थीं, लेकिन किसानों के आंदोलन और जाटों की पार्टी से कथित नाराजगी के कारण यहां के समीकरण बदले हुए हैं। अमित शाह इस समीकरण को पार्टी के पक्ष में कैसे लाएंगे,इस पर सबकी निगाह लगी हुई है।

किसान आंदोलन के कारण मतदाताओं में भाजपा को लेकर गहरी नाराजगी पैदा हो गई थी। चौधरी अजित सिंह के बाद लगभग एकमुश्त भाजपा की तरफ आए जाटों ने कृषि कानूनों की वापसी को अपनी मूंछ का सवाल बना लिया था। परिस्थिति को ठीक से

समझे बिना किसानों के प्रति भाजपा नेताओं के गैरजिम्मेदाराना बयानों ने इस स्थिति को बहुत ज्यादा गंभीर बना दिया था। भाजपा नेताओं को उनके क्षेत्रों में प्रवेश तक नहीं करने दिया जा रहा था। भाजपा के कद्दावर जाट नेता और केंद्र में मंत्री संजीव सिंह बालियान तक का विरोध हो रहा था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 136 सीटों में से भाजपा को 103 सीटों पर सफलता मिली थी। समाजवादी पार्टी को केवल 27 सीटें मिली थीं, तो अन्य दलों को केवल छह सीटों से संतोष करना पड़ा था। इसके पहले यानी 2012 के विधानसभा चुनाव में इसी क्षेत्र में

समाजवादी पार्टी को 58 तो बहुजन समाज पार्टी को 39 सीटों पर सफलता मिली थी। उस चुनाव में भाजपा को पश्चिम में केवल 20 सीटें ही हासिल हुई थीं। इस चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल को नौ और कांग्रेस को आठ सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने इस क्षेत्र में क्लीन स्वीप कर दिया था। भाजपा की इस सफलता ने बसपा जैसे दलों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया था, बदले समीकरण में क्या भाजपा अपना 2012 का प्रदर्शन भी दोहरा पाएगी, इसको लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। किसान जाट मतदाताओं को मनाने के लिए ही केंद्र को कृषि कानूनों की वापसी का कड़वा घंट निगलना पड़ा है।

अमित शाह की रणनीति के अनुसार अब जाट मतदाताओं तक यही बात पहुंचाने की कोशिश की जा रही है कि पार्टी ने जाटों की बात को ‘ऊपर’ रखते हुए ही कानूनों की वापसी का फैसला लिया है।

कृषि कानूनों की वापसी से जाटों की नाराजगी दूर

गाजियाबाद महानगर के भाजपा अध्यक्ष संजीव शर्मा ने कहा कि यह बात पूरी तरह सही नहीं है कि पूरे जाट भाजपा के खिलाफ हो गए हैं। * सच्चाई यह है कि जाट एक कट्टर राष्ट्रवादी कॉम है और राष्ट्रवादी राजनीति के कारण वे कभी भाजपा से दूर नहीं हो सकते किसान आंदोलन के कारण कुछ किसानों को भाजपा से नाराजगी हो गई थी, लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी का फैसला किया, यह नाराजगी दूर हो गई है। उन्होंने किसानों की बात मानते हुए ही इन कानूनों को वापस लेने का निर्णय किया है। वहीं, आरएलडी नेता तारिक मुस्तफा ने कहा कि 2013 के दंगों के कारण जाट-मुस्लिम एकता में दरार पड़ गई थी, जिसके कारण 2014, 2017 और 2019 में भाजपा को इस क्षेत्र में सफलता मिल गई थी, लेकिन किसान आंदोलन के कारण यहां लोगों को अपनी भूल का एहसास हो गया है। यहां के लोग पहले किसान होते हैं और बाद में हिंदू-मुस्लिम होते हैं।

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