बीकानेर,पंजाब की तरह राजस्थान कांग्रेस में भी सियासी घमासान जोरों पर है। सचिन पायलट की दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद से राजस्थान में | राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। पायलट समर्थकों को नियुक्तियां होने तथा मंत्रिमंडल में स्थान मिलने की उम्मीद बंधी है। वैसे राजस्थान में संगठन और सत्ता में पायलट खेमे को तव्वजो दी जाएगी या कितनी दी जाएगी और दी भी जाएगी या नहीं इन | सवालों का उत्तर सिर्फ क्यासों पर ही आधारित है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार पायलट ग्रुप को इससे पहले भी आलाकमान द्वारा कई बार आश्वासन दिए जा चुके हैं। आश्वासनों के बलबूते लगभग 3
साल का वक्त बीत चला है। कोई बड़ी बात नहीं यदि इस बार भी यह मुलाकात मात्र आश्वासनों का पुलिंदा ही साबित हो जाए। कांग्रेस में पंजाब में सिद्धू और कैप्टन की लड़ाई ने आखिर कैप्टन को पार्टी छोड़नी पड़ी थी। राजस्थान में भी लड़ाई कुछ उसी प्रकार का रूप लेती जा रही है। पायलट और गहलोत खेमे में लम्बे समय से खींचतान चली आ रही है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के लाख हस्तक्षेप के बावजूद दोनों नेताओं के मध्य पैदा हुई खाई को पाटा नहीं जा सकता है सचिन पार्टी को सत्ता में लाने वाले वर्करों को उनका हक दिलाए जाने की बात कह रहे हैं जबकि गहलोत अभी संगठन और मंत्रिमंडल में
विस्तार को टालना चाहते हैं। समय निकलता देख पायलट ने इस बार सख्त रवैया अख्तियार किया है। पायलट के रुख को भांपते हुए पार्टी आलाकमान ने उन्हें मिलने का समय दिया एवं उन्हें ठोस आश्वासन देकर भेजा है।
दूसरी ओर राज्य में मंत्रीमंडल, निगमों, बोड़ों आदि में नियुक्तियों की चर्चा चलते ही पद पाने के बीकानेर संभाग के कई नेताओं ने जयपुर डेरा लगा लिया है। इस बार के फेरबदल में कइयों को अपनी किस्मत बदलती नजर आ रही है। बहरहाल ऊंट किस करवट बैठता है ? किसका नम्बर आता है…? कौन बाहर होता है यह वक्त ही तय करेगा।