












बीकानेर जयपुर,नीरजा मोदी स्कूल की छात्रा अमायरा की दुखद मृत्यु को 50 दिन बीत जाने के बाद भी यदि शिक्षा विभाग की संवेदनाएं नहीं जागतीं, तो यह केवल लापरवाही नहीं बल्कि संरक्षित अपराध का गंभीर उदाहरण है। संयुक्त अभिभावक संघ का आरोप है कि राजस्थान शिक्षा विभाग द्वारा अत्यधिक देरी से जारी किया गया नोटिस अब जांच कम और लीपापोती अधिक प्रतीत हो रहा है।
सीबीएसई बोर्ड द्वारा इस प्रकरण में स्पष्ट रूप से “बुलिंग” को मुख्य कारण मानते हुए स्कूल प्रशासन को एक माह की समय-सीमा में नोटिस जारी किया गया था। जब वह समय-सीमा समाप्त हुए तीन दिन बीत चुके, तब शिक्षा विभाग की नींद खुलना अपने आप में कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि विभाग ने अपने नोटिस में बुलिंग जैसे मूल मुद्दे को जानबूझकर पूरी तरह बाहर रखा, जो स्पष्ट रूप से स्कूल प्रबंधन को बचाने की मंशा को दर्शाता है।
संघ का कहना है कि बुलिंग को नजरअंदाज करना महज एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि मानसिक प्रताड़ना को वैध ठहराने जैसा अपराध है। छात्रा की बार-बार की शिकायतें, असफल काउंसलिंग सिस्टम, संवेदनहीन स्कूल प्रशासन और विभागीय निगरानी की घोर विफलता — इन सभी तथ्यों पर शिक्षा विभाग का मौन उसकी संदिग्ध भूमिका को उजागर करता है।
और भी गंभीर तथ्य यह है कि शिक्षा विभाग द्वारा गठित जांच समिति के कुछ सदस्य पहले ही दिन स्कूल प्रशासन व स्टाफ के व्यवहार से आहत हो चुके थे, इसके बावजूद जांच को सीमित दायरे में समेटने का प्रयास किया गया। यह दर्शाता है कि विभाग सत्य की खोज नहीं, बल्कि नुकसान नियंत्रण की भूमिका में काम कर रहा है।
*संयुक्त अभिभावक संघ के तीखे सवाल—*
• जब सीबीएसई बोर्ड ने बुलिंग को इस त्रासदी का प्रमुख कारण माना, तो शिक्षा विभाग ने इसे नोटिस से बाहर क्यों रखा?
• क्या बुलिंग को स्वीकार करने से स्कूल की आंतरिक अव्यवस्था, काउंसलिंग की विफलता और विभागीय निष्क्रियता उजागर हो जाती?
• क्या इसी डर से इस मुद्दे को जानबूझकर दबाया गया?
*संघ के और गंभीर प्रश्न—*
• 17 दिसंबर को नोटिस जारी होने के बावजूद उसे सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया?
• क्लास टीचर पुनीता शर्मा और गणित शिक्षिका रचना का निलंबन 50 दिन बाद क्यों किया गया — क्या यह सिर्फ दिखावटी कार्रवाई नहीं?
• क्या यह पूरा घटनाक्रम विभाग और स्कूल प्रशासन की पूर्व नियोजित साठगांठ को उजागर नहीं करता?
• नोटिस जारी करने में की गई देरी का उपयोग भाषा को स्कूल-अनुकूल बनाने के लिए तो नहीं किया गया?
*प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा—* “जब सीबीएसई बोर्ड बुलिंग को इस घटना का अहम कारण मान चुका है, तब शिक्षा विभाग द्वारा उसे नोटिस से बाहर रखना बेहद शर्मनाक और अमानवीय है। बुलिंग कोई साधारण शब्द नहीं, यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और जीवन से जुड़ा गंभीर अपराध है। इसे नजरअंदाज करना न सिर्फ अमायरा के साथ अन्याय है, बल्कि पूरे अभिभावक समाज के साथ विश्वासघात है।”
संयुक्त अभिभावक संघ का स्पष्ट मत है कि यदि समय रहते बुलिंग की शिकायतों पर ठोस कार्रवाई होती, प्रभावी एंटी-बुलिंग तंत्र लागू किया जाता और स्कूलों की नियमित निगरानी होती, तो संभवतः यह हृदयविदारक घटना टाली जा सकती थी। शिक्षा विभाग का यह रवैया भविष्य में ऐसी घटनाओं को और बढ़ावा देगा, जो अत्यंत चिंताजनक है।
*संयुक्त अभिभावक संघ की प्रमुख मांगें—*
• बुलिंग को केंद्र में रखते हुए मामले की स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं न्यायिक जांच कराई जाए।
• स्कूल प्रबंधन के साथ-साथ शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका की भी जांच हो।
• नोटिस में देरी और बुलिंग को नजरअंदाज करने पर कारण बताओ एवं दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
• प्रदेश के सभी सरकारी व निजी स्कूलों में सख्त एंटी-बुलिंग नीति, प्रशिक्षित काउंसलर और नियमित सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य किया जाए।
संयुक्त अभिभावक संघ ने दो टूक शब्दों में चेतावनी दी है कि जब तक इस मामले में पूरा सच सामने नहीं आता और दोषियों को सजा नहीं मिलती, तब तक संघ अभिभावकों की आवाज को सड़क से सदन तक बुलंद करता रहेगा और आवश्यकता पड़ने पर राज्यव्यापी आंदोलन से भी पीछे नहीं हटेगा।
