बीकानेर रियासतकाल में पनपी और राजा-रजवाड़ों की बदौलत दुनियाभर में पहचान कायम करने वाली बीकानेर की उस्ता कला फिर से जीवंत होने लगी है। इस कला की बारीकी को जानने वाले बीकानेर में अंगुलियों पर गिनने लायक ही उस्ता कलाकार बचे है। वह अगली पीढ़ी में इस कला को हस्तांतरित कर रहे है लेकिन अब दुनियाभर से इस कला को सीखने वाले बीकानेर आने लगे हैं। देशभर के कई राज्यों से युवा इन दिनों बीकानेर में रहकर उस्ता कला सीख रहे है।
यहां के किले, हवेलियों में आज भी उस्ता कला की कृतियां और दीवारों पर चित्रकारी इस कला की उत्कृष्टता की छाप छोड़ती है। यहां उस्ता कला सीखने आने वाले युवा उस्ताद से कला की बारीकी सीखने के साथ इन किले हवेलियों में कला के इतिहास को जानने और समझने का प्रयास करते हैं।
सीखने के बाद आगे बढ़ाएंगे
उस्ता कला को सीखने बीकानेर आए कुणाल का कहना है कि उस्ता कला को बारीकी से सीख रहे हैं। पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद इस पर
प्रेक्टिस करेंगे। अभी रोजाना चार से पांच घाटे तक सीख रहे हैं। इसके बाद लोगों को इसके बारे में जानकारी देंगे। बीकानेर की इस कला के बारे में प्रचार- प्रसार भी करेंगे।
उस्ता आर्ट के बारे में जाना इतिहास
विद्यार्थी मान्या अग्रवाल ने बताया कि
एक सप्ताह के लिए बीकानेर आए है। आने के बाद सबसे पहले दो से तीन दिन तक काम किया और इसके इतिहास के बारे में जानकारी ली। कैसे शुरू होता कैसे बनता है इसके बारे में जाना। इस दौरान फोटो फ्रेम, लकड़ी के बॉक्स, की-होल्डर, कुपीसहितकई चीजोंकोबनायाहै।यहांस्थितजूनागढ़ किले, लालगढ़ व स्टेट म्यूजियम को देखा वहां के उस्ता आर्ट को देखा।
अब तक 800 से 1000 बच्चे सीख चुके कला
उस्ता कलाकार अजमल हुसैन उस्ता ने बताया की पिछले 35 साल से उस्ता कला का काम कर रहे है। यह कला लकड़ी, मार्बल, शीशे सहित अन्य चीजों पर करते है। इसको लेकर खुद रंगों को बनाते हैं। इन दिनों कॉलेज के सात विद्यार्थी जानकारी लेने बीकानेर आए हुए है। काफी रुचि लेकर सीख रहे है, उम्मीद है कि सीखकर और नई चीजे जोड़ेंगे। इस कला को बचाने की कोशिश करेंगे। अब तक करीब 800 से 1000 देशी विदेशी • युवा इस कला को सीख चुके है। जैसे जैसे युवा इसमें जुड़ेंगे वैसे ही पूरे देश में नाम हो पाएगा।
इन जगहों से आए विद्यार्थी
मान्या अग्रवाल, प्रयागराज सौम्या सिन्हा अहमदाबाद शर्मिला जैन बेंगलूरू, श्वेताकुशवाहपटना, सोनाली नागपुर, कुणाल औरंगाबाद से।