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बीकानेर,प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा अपने गत साढ़े चार दशकों की सृजनात्मक एवं रचनात्मक यात्रा में नव पहल व नवाचार के तहत इस बार पुस्तकालोचन कार्यक्रम जो कि पुस्तक संस्कृति एवं आलोचना विधा को समर्पित है, जिसकी पांचवीं कड़ी स्थानीय नत्थूसर गेट बाहर स्थित लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन में हिन्दी-राजस्थानी के कथाकार-उपन्यासकार एवं चित्रकार नगेन्द्र किराड़ू के राजस्थानी उपन्यास ‘कबीरा सोई पीर है’ पर आयोजित हुई।
पुस्तकालोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार-आलोचक कमल रंगा ने कहा कि नगेन्द्र किराड़ू का उपन्यास नारी विमर्श एवं मनोविज्ञान का तलपट है। जिसके माध्यम से नारी अस्मिता और उसके जीवन के विभिन्न संघर्ष के आयामों को रेखांकित करते हुए किराडू़ अपने बोल्ड कथ को अपने अंदाज से अनूठे शिल्प में ढालते हुए पाठक से एक रागात्मक रिश्ता बनाते है।
रंगा ने आगे कहा कि 1903 में शुरू हुई राजस्थानी उपन्यास विधा की यात्रा आज २१वीं सदी के इस पड़ाव तक आते-आते अपनी सृजनात्मक रंगत भारतीय भाषाओं में बिखेर रही है। क्योंकि राजस्थानी उपन्यास के कथ-कहन एवं भाषा-भंगिमा अपने आप में महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ आलोचक एवं शिक्षाविदï् डॉ. उमाकान्त गुप्त ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘कबीरा सोई पीर है’ उपन्यास जमीन से जुड़ा है, और चेतना को झकझोरता है। स्त्री विमर्श की दिशा को खोलते हुए पात्रों में राजस्थानी की मूल चेतना को सशक्त शब्द देता है। यही इस उपन्यास एवं राजस्थानी उपन्यास यात्रा का सार्थक एवं सामथ्र्य का प्रमाण भी है।
डॉ. गुप्त ने आगे कहा कि पुस्तकालोचन कार्यक्रम नगर ही नहीं प्रदेश में नवाचार तो है ही साथ ही विशेष तौर से आलोचना साहित्य एवं पुस्तक संस्कृति को समृद्ध करने वाला है। जिसके लिए आयोजक प्रज्ञालय संस्थान साधुवाद की पात्र है।
‘कबीरा सोई पीर है’ पर आलोचनात्मक विचार व्यक्त करते हुए मुख्य वक्ता वरिष्ठ शिक्षाविदï् एवं आलोचक अशोक व्यास ने कहा कि इस उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के प्रति विद्रुपता एवं विसंगतियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषणात्मक विवरण किया गया है।
अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी रखते हुए संवादी वरिष्ठ साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि नारी की पीड़ा को स्वर देने वाला यह महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसी क्रम में संवादी वरिष्ठ व्यंग्यकार आत्माराम भाटी ने अपनी समीक्षा में कहा कि इस उपन्यास में महिलाओं के प्रति समाज की सोच के विभिन्न पक्षों को उजागर करते हुए समाज में व्याप्त विडम्बनाओं पर चोट की गई है।
अपनी बात रखते हुए उपन्यासकार नगेन्द्र किराड़ू ने अपनी रचना प्रक्रिया को साझा करते हुए अच्छे आयोजन के माध्यम से आलोचना एवं पुस्तक संस्कृति को समृद्ध करने बाबत आयोजकों का साधुवाद करते हुए अपने अगले उपन्यास के बारे में भी बात की।
प्रारम्भ में सभी का स्वागत करते हुए वरिष्ठ कवि जुगलकिशोर पुरोहित ने आयोजन की महत्ता को रेखांकित करते हुए संस्था के नवाचारों के बारे में बताया।
पुस्तकालोचन के महत्वपूर्ण कार्यक्रम में बुलाकी शर्मा, प्रमोद शर्मा, डॉ. अजय जोशी, ज़ाकिर अदीब, राजेश रंगा, बी.एल. नवीन, महेन्द्र हर्ष, इसरार हसन कादरी, डॉ. गौरीशंकर प्रजापत, इरशाद अज़ीज़, गिरिराज पारीक, मदन जैरी, प्रेम नारायण व्यास, पुनीत पाण्डिया, कृष्ण चन्द्र पुरोहित, डॉ. नृसिंह बिन्नाणी, योगेन्द्र कुमार पुरोहित, नंदनी श्रीमाली, डॉ. फारूक चौहान, आशीष रंगा, जुगलकिशोर पुरोहित, भवानी सिंह राठौड़, हरिनारायण आचार्य, तोलाराम सारण एवं अख्तर अली आदि की गरिमामय सहभागिता रही।
कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कवि गिरिराज पारीक ने किया एवं सभी का आभार वरिष्ठ इतिहासविदï् डॉ. फारूक चौहान ने किया।

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