
बीकानेर,भारत और रूस के बीच गहराते संबंधों के बीच एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने न केवल राजनयिक हलकों को चिंता में डाल दिया है बल्कि राजस्थान और हरियाणा के ग्रामीण परिवारों को गहरे सदमे में डाल दिया है। मामला उन भारतीय युवाओं से जुड़ा है जिन्हें पढ़ाई और नौकरी के बहाने रूस ले जाया गया और बाद में छल से सेना में भर्ती कराकर यूक्रेन सीमा पर भेज दिया गया। यह खुलासा तब हुआ जब बीकानेर जिले के अर्जनसर स्टेशन निवासी महावीर प्रसाद गोदारा ने बताया कि उनका बेटा अजय कुमार गोदारा पिछले साल नवंबर 2024 में पढ़ाई के उद्देश्य से रूस गया था, लेकिन अब वह और उसके साथी रूस-यूक्रेन युद्ध में बंधक जैसी स्थिति में फंस चुके हैं।
पढ़ाई से युद्धभूमि तक: अजय गोदारा की दर्दनाक कहानी
28 नवंबर 2024 को अजय कुमार गोदारा रूस पढ़ाई करने के लिए स्टडी वीजा पर रवाना हुआ था। वहां पहुंचने के कुछ ही समय बाद उसकी मुलाकात एक महिला से हुई जिसने भरोसा दिलाया कि वह उन्हें सेना में नौकरी दिलवा सकती है। उसने अजय और उसके साथियों को रूसी भाषा में छपे कुछ दस्तावेज भरवाए और हस्ताक्षर करवाए। मासूम युवाओं ने भाषा की समझ न होने के कारण उन दस्तावेजों पर आंख मूंदकर साइन कर दिए। इसके बाद उन्हें सेना की वर्दी थमा दी गई और हथियार पकड़ाकर यूक्रेन सीमा पर भेज दिया गया।
परिवार को मिली जानकारी के अनुसार, अजय और उसके साथियों को लगातार धमकियों और मारपीट के जरिए दबाव में रखा गया। उनकी निजी पहचान से जुड़े दस्तावेज भी छीन लिए गए ताकि वे भागकर कहीं शिकायत न कर सकें।
तीन दर्जन से अधिक भारतीय युवा फंसे
अजय गोदारा अकेला नहीं है, उसके साथ हरियाणा और राजस्थान के करीब तीन दर्जन युवा इसी तरह रूस की सेना में जबरन भर्ती कर दिए गए हैं। इनमें बीकानेर, चूरू, झुंझुनूं और हरियाणा के हिसार, भिवानी और रोहतक जैसे इलाकों के युवक शामिल बताए जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, सभी को सीमा पर तैनात कर दिया गया है और उनके पास न तो घर लौटने का रास्ता है और न ही खुद को बचाने का कोई जरिया।
अजय गोदारा के पिता महावीर प्रसाद कहते हैं, “हमारे बच्चे पढ़ाई करने गए थे, लेकिन अब उन्हें बंदूक पकड़ाकर युद्ध में धकेल दिया गया है। यह सीधा-सीधा मानवाधिकार का उल्लंघन है। हमें डर है कि कहीं हमारे बेटे और उसके साथी वहां मारे न जाएं।”
राजस्थान सरकार से केंद्र तक गुहार
मामले की गंभीरता को देखते हुए राजस्थान के खाद्य मंत्री सुमित गोदारा ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से संपर्क किया और इस पर तुरंत कार्रवाई करने का आग्रह किया। इसके बाद मेघवाल ने विदेश मंत्रालय को ईमेल भेजा और भारतीय दूतावास, मास्को को इस घटना की पूरी जानकारी दी।
भारतीय दूतावास ने इस ईमेल का जवाब देते हुए कहा है कि आवश्यक कार्रवाई शीघ्र ही की जाएगी। हालांकि, परिवारजन इस बात से संतुष्ट नहीं हैं और तत्काल ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं।
दिल्ली में गुहार लगा रहे हैं परिजन
अजय गोदारा का भाई प्रकाश गोदारा पिछले कई दिनों से दिल्ली में है और लगातार केंद्रीय मंत्रियों से मुलाकात कर रहा है। उसने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल समेत कई वरिष्ठ नेताओं से मिलकर अपने भाई और अन्य युवाओं को बचाने की गुहार लगाई है। प्रकाश ने कहा, “यह केवल अजय की समस्या नहीं है, दर्जनों भारतीय युवा रूस की सेना में फंसे हैं। हम चाहते हैं कि भारत सरकार तुरंत रूस से बातचीत कर हमारे बच्चों को सुरक्षित वापस लाए।
परिवारों में मातम और बेचैनी
गांव अर्जनसर और आसपास के क्षेत्रों में यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। परिवारों में मातम जैसा माहौल है। मांएं अपने बच्चों के सुरक्षित लौटने की दुआएं कर रही हैं और पिता सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को इस मामले पर तुरंत कड़ा कदम उठाना चाहिए क्योंकि यह केवल कूटनीतिक मुद्दा नहीं बल्कि इंसानी जिंदगी का सवाल है।
मानवीय संकट में फंसा भारत-रूस रिश्ता
यह मामला भारत-रूस संबंधों के लिए भी एक चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रहा है। अब तक रूस को भारत का पारंपरिक सहयोगी माना जाता रहा है, लेकिन अगर भारतीय छात्रों और युवाओं को वहां इस तरह से जबरन भर्ती किया जा रहा है, तो यह अंतरराष्ट्रीय कानून और समझौतों के खिलाफ है। राजनयिकों का मानना है कि इस मामले की गूंज जल्द ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सुनाई दे सकती है।
पीड़ित परिवारों की अपील
अजय के पिता महावीर प्रसाद और भाई प्रकाश का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर को व्यक्तिगत रूप से इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और रूस सरकार से बातचीत कर इन युवाओं को सुरक्षित भारत लाना चाहिए।
गांव के बुजुर्गों ने कहा कि यह घटना सरकार और समाज के लिए एक चेतावनी है कि विदेशों में पढ़ाई और नौकरी के नाम पर युवाओं को ठगने वाले नेटवर्क कितने खतरनाक हैं। यह मामला सिर्फ एक परिवार या एक गांव का नहीं है, बल्कि उन तमाम भारतीय युवाओं का है जिनके सपनों को विदेशों की धरती पर तोड़ा जा रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि भारत सरकार अपने नागरिकों को बचाने के लिए कितनी जल्दी और कितनी सख्ती से कदम उठाती है।