
श्रीडूंगरगढ़,बीकानेर,हिंदी दिवस के अवसर पर राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति श्री डूंगरगढ़ द्वारा आयोजित भव्य समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय के कुलगुरु आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि हमारे भारतवर्ष का इतिहास प्रतिरोध का इतिहास है। इसमें यहां की भाषाओं का बड़ा योगदान रहा है। भाषाओं ने लोक और संस्कृति तथा इतिहास को जिंदा रखने का काम किया है। उन्होंने हिंदी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता विषय पर बोलते हुए कहा कि ए आई को भी संचालित कोई बुद्धिमान व्यक्ति ही करता है पर वह डेटाबेस पर आधारित है। लेखन में विश्वसनीय नहीं कही जा सकती। ए आई का सीधा इस्तेमाल नहीं कर उसका सावधानी पूर्वक परीक्षण किया जाना आवश्यक है।
कुलगुरु मनोज दीक्षित ने राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति के साहित्यिक कार्यों की प्रशंसा करते हुए भरोसा दिलाया कि वे आगामी दिनों में गंगासिंह विश्वविद्यालय से इसको किसी न किसी रूप में जोड़ने का कार्य करेंगे। भगवती पारीक ‘मनु’ की सरस्वती वन्दना से प्रारंभ हुए समारोह में समिति मंत्री व संयोजक रवि पुरोहित ने संस्था की 65 वर्षीय विकास यात्रा साझा की।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए स्थानीय विधायक ताराचंद सारस्वत ने कहा कि हिंदी एवं हमारी भारतीय संस्कृति दोनों अनुस्यूत है- एक दूसरे से जुड़ी हुई है, इसलिए संस्कृति को बचाने के लिए हिंदी को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। सारस्वत में इस बात पर भी बल दिया कि हमें हिंदी के साथ-साथ दैनन्दिनी जीवन में स्वदेशी अपनाना चाहिए।
हिंदी दिवस के अवसर पर “हिंदी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता- संभावनाएं और चुनौतियां” विषय पर आयोजित संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए महारानी सुदर्शना बालिका महाविद्यालय बीकानेर के पूर्व प्राचार्य डॉ. उमाकांत गुप्त ने त्रिस्तरीय ए आई के प्रयोग समझाते हुए कहा कि एआई के आने से बहुत सी चीजें सरल हुई हैं तथा भाषा के स्तर पर देखें तो शोधार्थियों के लिए एआई ने संदर्भों को सुगम किया है। चिकित्सा जगत तथा मशीनीकरण में उसकी उपायदेयता उत्तम कहीं जा सकती है। विशिष्ट अतिथि साहित्यकार व समालोचक डॉ. गजादान चारण ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता में संवेदना का अभाव रहता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता से कविता तो लिखी जा सकती है पर उसमें काव्य के लालित्य तथा संवेदनाओं का अभाव देखा जा सकता है।
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति के अध्यक्ष श्याम महर्षि ने समिति के द्वारा की जाने वाली साहित्यिक सेवाओं के बारे में जानकारी प्रस्तुत की। हिंदी दिवस के अवसर पर संस्था के सर्वोच्च सम्मान साहित्य श्री से डॉ. पद्मजा शर्मा को सम्मानित किया गया, उन्होंने कहा कि मैं अपना यह सम्मान अपनी कृतियों के पात्रों को समर्पित करती हूं। नंदलाल महर्षि स्मृति हिंदी सर्जन पुरस्कार जबलपुर के देवेंद्र कुमार मिश्रा, सुरेश कंचन ओझा लेखन पुरस्कार कुमार सुरेश, चंद्र मोहन हाड़ा हिमकर स्मृति पुरस्कार उपन्यास लेखक विश्वनाथ तंवर को प्रदान किया गया। रामकिशन उपाध्याय समाज सेवा पुरस्कार हरिशंकर बाहेती को प्रदत्त किया गया। बाहेती ने समर्पित राशि को दुगुना कर समिति को सौंपते हुए कहा कि इसे साहित्यिक व सेवा के कार्यों में खर्च किया जाए। शिव प्रसाद सिखवाल महिला लेखन पुरस्कार संगीता सेठी बीकानेर, शब्द शिल्पी सम्मान अजमेर के सुरेश कुमार श्रीचंदानी तथा श्याम सुंदर नगला बाल साहित्य पुरस्कार शाहजहांपुर के डॉ. नागेश पांडेय को समर्पित किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. मोनिका गौड़ ने किया।
कार्यक्रम में चेतन स्वामी, बजरंग शर्मा, रामचन्द्र जी राठी, गजानंद सेवग, मदन सैनी, सत्यनारायण योगी, सत्यदीप भोजक, महेश जोशी, सोहन ओझा, भवानी उपाध्याय, तुलसीराम चौरड़िया, विजय महर्षि, महावीर माली, नारायण सारस्वत, श्रीभगवान सैनी, महावीर सारस्वत, सुशीला सारण, मीना मोरवानी, प्रतिज्ञा सोनी, सरोज शर्मा, पूनमचंद गोदारा, श्रवण गुरनानी, सुनील खांडल, नंदकिशोर पारीक, हरीराम सारण, लक्ष्मी कांत वर्मा, दयाशंकर शर्मा, कैलाश शर्मा आदि साहित्य प्रेमी व गणमान्य जन उपस्थित रहे