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बीकानेर,महाजन फायरिंग रेंज से विस्थापित हुए परिवारों की पीड़ा,आंखों में उतर आता है आशियां उजड़ने का दर्द लेकिन तमाम सुविधाओं के बाद भी बीते करीब 34 सालों में ग्रामीण अपने उजड़े आशियानों को नहीं भूल पाए है।

मकानों को देखकर छलकता है दर्द

भोजरासर, कुम्भाणा, मोटलाई, खानीसर, ठोईयां, मणेरा, दुदेर सहित अन्य गांवों को उजड़े कई साल बीत जाने के बाद इन गांवों में आज भी थेह बनते पुराने मकान अपना अस्तित्व बयां कर रहे है। इन गांवों में बने लोकदेवताओं के मंदिरों पर आज भी विशेष तिथियों पर मेलों का आयोजन होता है। भोजरासर से आकर महाजन में बसे राजूराम शर्मा बताते हैं कि इन गांवों में राम रमता था। भूमि जहां उपजाऊ थी। वहीं लोगों में भाईचारे की भावना थी। कुम्भाणा निवासी व्यवसायी बजरंगलाल लखोटिया बताते हैं कि
महाजन. महाजन फील्ड फायरिंग रेंज की स्थापना के लिए अधिग्रहित 34 गांवों के किसानों को कहने को तत्कालीन केन्द्र सरकार ने मुआवजा व सिंचित क्षेत्र में जमीनों का आवंटन किया लेकिन पूर्वजों के बनाएं आशियां उजड़ने का दर्द आज भी इन विस्थापित परिवारों की आंखों में उतर आता है। गौरतलब है कि फायरिंग रेंज की स्थापना के लिए रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 1984-85 में महाजन क्षेत्र के 34 गांवों की भूमि को अधिग्रहित किया था। ग्रामीणों को खाजूवाला, दंतौर, पूगल, मोहनगढ़, नाचना आदि क्षेत्र में कृषि भूमि का आवंटन भी किया गया
आज भी कुम्भाणा में होलिका का दहन करने की परम्परा का निर्वहन होता है। बमों की परवाह किए बिना कुम्भाणा से अन्य जगह पर जाकर बसे लोग होली में रेंज में पहुंचते है। सेना के सहयोगी

बने है मकान

फिलहाल रेंज एरिया में खण्डहर बन चुके मकान सेना के लिए कारगर सिद्ध हो रहे है। समय-समय पर होने वाले युद्धाभ्यास में इन मकानों को काल्पनिक दुश्मन के ठिकाने मानकर बम व गोलियां बरसाई जाती है। अमेरिका, रूस, फ्रांस आदि के साथ होने वाले युद्धाभ्यास में ये मकान महत्ती भूमिका अदा करते है। हालांकि इन मकानों में आज जीवन शून्य है फिर भी आज भी बमों व गोलियों के साथ मौसम की मार को सहते हुए मकान अपनी जीवटता का प्रमाण दे रहे है।

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