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बीकानेर,श्रीलंका और बर्मा में रामायण कई रूपों में प्रचलित है। लोक गीतों के अतिरिक्त रामलीला की तरह के नाटक भी खेले जाते हैं। बर्मा में बहुत से नाम राम के नाम पर हैं।

मेडागास्कर द्वीप से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक के द्वीप समूह पर रावण का राज्य था। राम विजय के बाद इस सारे भू-भाग पर राम की कीर्ति फैल गई। राम के नाम के साथ रामकथा भी इस भाग में फैली और बरसों तक यहां के निवासियों के जीवन का प्रेरक अंग बनी रही।

मलेशिया में रामकथा का प्रचार अभी तक है। यहां रामायण को ‘हिकायत सेरीराम’ कहते हैं।

थाईलैंड के पुराने रजवाड़ों में भरत की भांति राम की पादुकाएं लेकर राज्य करने की परंपरा पाई जाती है। वे सभी अपने को रामवंशी मनते थे। यहां अजुधिया, लवपुरी और जनकपुर जैसे नाम वाले शहर हैं। यहां पर राम कथा को रामकीर्ति कहते हैं और मंदिरों में जगह-जगह रामकथा के प्रसंग अंकित हैं।

कम्बोडिया में हिन्दू सभ्यता के अन्य अंगों के

है। रामायण के कई प्रसंगों के आधार पर वहां आज भी रात-रात भर कठपुतलियों का नाच होता है। जावा के मंदिरों में वाल्मीकि रामायण के श्लोक जगह-जगह अंकित मिलते हैं।

सुमात्रा द्वीप का वल्मीकि रामायण में स्वर्ण भूमि नाम दिया गया है। रामायण यहां के जन जीवन में वैसे ही अनुप्राणित है, जैसे भारतवासियों के ।

बाली द्वीप भी थाईलैंड, जावा और सुमात्रा की तरह आर्य संस्कृति का एक दूरस्थ सीमा स्तम्भ है। रामायण का प्रचार यहां भी घर-घर में है।

इन देशों के अतिरिक्त फिलीपींस, चीन, जापान और प्राचीन अमरीका तक राम-कथा का प्रभाव मिलता है। मैक्सिको और मध्य अमरीका की मय सभ्यता और इन्का सभ्यता पर प्राचीन भारतीय संस्कृति की जो छाप मिलती है, उसमें रामायण कालीन संस्कारों का प्राचुर्य है। पेरू में राजा अपने को सूर्यवंशी ही नहीं कौशल्यासुत राम वंशज भी मानते हैं। ‘रामसीतव’ नाम से आज भी यहां राम-सीता उत्सव मनाया जाता है।

साथ-साथ रामायण का प्रचलन आज भी है। छठी शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार वहां कई स्थानों पर रामायण-महाभारत का पाठ होता था।

जावा में रामचंद्र राष्ट्रीय पुरुषोत्तम के रूप में सम्मानित हैं। वहां की सबसे बड़ी नदी का नाम सरयू

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