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बीकानेर, देशभर में दीपावली पर्व मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना और आतिशबाजी के बीच धूमधाम से मनाया जाता है। घर-घर से गली मोहल्ले और बाजार तथा शहर रंग बिरंगी रोशनी, दीपमाला से सजे रहते है। महालक्ष्मी के साथ महासरस्वती, महाकाली और कुबेर का पूजन कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। इसी दिन बीकानेर के बारह गुवाड़ चौक में रियासतकालीन परम्परा के तहत दीपोत्सव खेल बन्नाटी का आयोजन होता है। आग की लपटों के बीच खेले जाने वाले इस साहसिक खेल को देख हर कोई अंचभित हो उठता है। छोटे बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग बन्नाटी के साथ हैरतअंगेज प्रदर्शन कर उपस्थित दर्शकों से वाहवाही लूटते है। गुरुवार रात को इस खेल का आयोजन होगा।

छंगाणी बताते हैं कि दशकों पूर्व शिवनाथा मारजा ओझा ने इस खेल की यहां शुरुआत की। इसके बाद फागणिया मारजा ने इस खेल को बुलंदियों तक पहुंचाया और दर्जनों बन्नाटी खिलाड़ियों को तैयार किया बन्नाटी खेल में शंकर लाल ओझा बृजरतन ओझा, मनोहर लाल ओझा मेघसा छंगाणी, दसू महाराज, सुंदर ण छंगाणी सहित दर्जनों खिलाड़ियों ने ख्याति अर्जित की। वहीं वरिष्ठ खिलाड़ी दुर्गादास ओझा, जयकिशन ओझा, ईश्वर महाराज आदि के निर्देशन में दर्जनों युवा और बच्चे इस खेल कौशल में पारंगत हुए है।

यह है बन्नाटी

बन्नाटी बांस की लकड़ी से तैयार होती है। लकड़ी छह फुट लंबी होती है। लकड़ी के दोनों सिरों पर करीब एक-एक फुट तक लोहे की चद्दर को कील की सहायता से गोलाई में

लगाया जाता है। सूती धोती से कोडे तैयार किए जाते हैं। इन कोडों को छह या आठ की संख्या में बांस की लकड़ी के दोनों ओर कील तथा वायर के माध्यम से बांध दिए जाते हैं। कपड़ों को तेल में भिगोकर रखा जाता है। दीपावली के दिन लकड़ी के दोनों तरफ बंधे कपड़ों में आग

जलाकर इसे घुमाया जाता है। हर कोई रोमांचित

दीपावली के दिन बन्नाटी खेल को देख हर कोई रोमांचित हो उठता है। बन्नाटी प्रदर्शन के दौरान खिलाड़ी जलती हुई बन्नाटी को कभी अपने सिर के उपर से तो कभी दायी और कभी बांयी ओर तेज घुमाता है। सिर के आगे से, कमर में पीछे की ओर तथा पांवों के नीचे से निकालकर खिलाड़ी खेल कौशल का प्रदर्शन करते हैं। बन्नाटी प्रदर्शन के दौरान चौक प्रांगण ‘बोलो वाह बन्नाटी वाह’ के स्वरों से गूंज उठता है।

दशकों पुरानी परम्परा

बन्नाटी खेल का आयोजन हो रहा है। बन्नाटी के वरिष्ठ खिलाड़ी बारह गुवाड़ चौक में दशकों से दुर्गादास ओझा व ईश्वर महाराज

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