बीकानेर,राजस्थान में पिछले 2 सालों से कांग्रेस की सियासी हलचल लोगों में खासी रुचि जगा रही है लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह सियासी चर्चा अपने अंजाम तक पहुंच गई है और यह स्पष्ट हो गया है कि राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत एक सर्वमान्य और शक्तिशाली नेता के रूप में असंदिग्ध रूप से स्थापित हो चुके हैं. उनका शुमार अब राजस्थान के स्वतंत्रता के बाद से अब तक के सबसे ताकतवर नेताओं में हो गया है.
मौजूदा राजनीतिक हालात की चर्चा करें तो पंचायत से लेकर विधानसभा उपचुनाव तक गहलोत ने अपनी राजनैतिक क्षमता का लोहा मनवा लिया है. धौलपुर और अलवर जैसे भाजपा के गढ़ में कांग्रेस के जिला प्रमुख बन गए हैं और विधानसभा उपचुनाव के नतीजों के बारे में भी जो अनुमान आ रहे हैं वह अशोक गहलोत की स्थिति को ओर मजबूत करने वाले हैं. इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का पूरा समर्थन और विश्वास हासिल है. इस सबके बीच सचिन पायलट पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक पटल से अदृश्य नजर आ रहे हैं. उनके समर्थक विधायकों में भी वह जोश नजर नहीं आ रहा जो कई तरह के संकेत देता है. हालांकि मीडिया का एक तबका अब भी अशोक गहलोत के खिलाफ अपना अभियान जारी रखे हुए हैं इस अभियान को सोशल मीडिया से भी ताकत देने के प्रयास जारी हैं लेकिन धरातल पर स्थिति यह है कि राज्य में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में गहलोत के कद का कोई नेता नहीं बचा है. अगर भाजपा का कोई नेता उन्हें चुनौती दे सकता है तो वह वसुंधरा राजे हैं लेकिन भाजपा और संघ का निचला काडर उनके समर्थन में नहीं है. ऐसे में कई खेमों में बंटी हुई भाजपा गहलोत के राजनीतिक कौशल के आगे काफी बौनी नजर आ रही है। जहां पर कांग्रेस की अंदरूनी स्थिति की बात है अजय माकन हो या केसी वेणुगोपाल उनके लिए राजस्थान के बारे में कोई भी निर्णय लेना उनके खुद के स्तर पर संभव नहीं है.
अब आने वाले 2 साल राजस्थान में बड़े प्रशासनिक और राजनीतिक फैसलों वाले होंगे. बीते लंबे समय से कोरोना के कारण रुके हुए विकास कार्यों को गति देने का काम एक बड़ी चुनौती है और गहलोत शायद इसी चुनौती का मुकाबला करने की तैयारी में है. रीट परीक्षा से शुरू हुआ बड़े फैसले का यह दौर अभी जारी रहेगा. राज्य में आधारभूत ढांचे का निर्माण बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार देना और महंगाई पर नियंत्रण ऐसी चुनौतियां हैं जिन से निपटने के लिए बड़े राजनीतिक फैसलों की जरूरत है. ऐसा लगता है कि अब राज्य सरकार कांग्रेस के अंदरूनी कलह से ऊभर चुकी है और जनता को राहत देने की रणनीति पर काम कर रही है. जैसे-जैसे बड़े फैसले होंगे गहलोत विरोधियों के हौसलें और पस्त होते नजर आएंगे.