
उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी ने इस अवसर पर नमि मुनि के लिए छंदों की रचना कर उनका उत्साहवर्धन भी किया। उन्होंने बताया कि साधु-साध्वियों को ‘तपोधन’ कहा जाता है क्योंकि उनका असली धन ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप होता है।
अपने सहदीक्षित मुनि श्रेयांस कुमार जी की तप साधना का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि गंगाशहर आगमन के बाद उन्होंने लगातार 13 दिन, 12 दिन , एकान्तर की तपस्याएं कीं और अब कंठी तप का प्रत्याख्यान कर रहे हैं। इन्होंने तपस्या से अपना स्वास्थ्य स्वस्थ बना लिया। पहले जो कुछ ही कदम चलने में सहारा लेते थे, आज वे गोचरी के लिए भीनासर और बीकानेर तक जाते हैं। उनके मन में मेरे प्रति श्रद्धा का भाव है और वे बिना कहे हर कार्य में सहयोग करते हैं।
मुनि श्रेयांस कुमार जी ने नमि मुनि के तप की सराहना करते हुए मधुर गीत की प्रस्तुति दी। मुनि विमल विहारी जी ने इसे विलक्षण तप बताते हुए प्रेरणा स्रोत कहा। मुनि मुकेश कुमार जी ने भी भक्ति गीत प्रस्तुत किया।
मुनिश्री नमिकुमार जी ने अपने उद्बोधन में गुरुदेव की कृपा और उग्रविहारी तपोमूर्ति मुनिश्री कमल कुमार जी के मार्गदर्शन के प्रति आभार व्यक्त किया। समारोह के दौरान कई श्रद्धालुओं ने एकासन, उपवास, और बेले तप का प्रत्याख्यान किया। लाभचन्द आंवलिया ने 15 दिन की तपस्या का संकल्प लिया। समारोह में बड़ी संख्या में भाई-बहनों की उपस्थिति और सामायिकें श्रद्धा का केंद्र बनी रहीं। तेरापंथी सभा के मंत्री जतनलाल संचेती ने कहा कि यह आयोजन गंगाशहर के आध्यात्मिक वातावरण को और भी ऊर्जावान बना गया।